SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ ] [ शासवास० त० १०/४२ शक्यत्वात्, "हिरण्यगर्भः समवर्तताये” (ऋम्वेद ८ - १०-१२१ ) इत्याद्यागमेन रचनाविशेषकार्यानुमानेन च तत्र कर्त्रनुभवस्यानपायाच्च, अन्यथा कारणाभावे कार्यानुत्पत्तेरिछन्नमूलक र्तस्मरणस्यासंभवतिकत्वादिति न किश्विदेतत् । अथ स्मरणयोग्यत्वेऽपि सत्यस्मर्यमाणकर्तकत्वं हेतुः अस्ति चात्रापि कर्ता स्मरणयोग्यः, यद्यसौ स्यात् तदाऽग्निहोत्रादिप्रवृत्तिसमये स्मर्येत, स्वयमदृष्टफलेषु कर्मसु पित्राद्युपदेशमूलायां प्रवृत्तौ 'पित्रादिभिरेतदुपदिष्टम् ' इति पित्रादिस्मरणावश्यंभावदर्शनात् न चाभियुक्तानामपि वेदार्थानुष्ठातृणां ; अतः उस के कर्ता का नहीं कर्तृस्मरण का सम्भव न होने से वेद में कर्तृस्मरणाभाव को असिद्ध नहीं कहा जा सकता तो यह ठीक नहीं है । क्योंकि यदि अपने को कर्ता का प्रत्यक्ष न होने के नाते कर्ता के अनुभव का अभाव माना जाएगा । तब आगमान्तर यानी वेदान्य शास्त्र के कर्ता का भी अपने को प्रत्यक्ष न होने से उस के कर्त्ता का भी अनुभव अमान्य होगा । फलतः आगमान्तर के भी कर्ता का स्मरण न हो सकने से कर्तृस्मरणाभाव उस के अपौरुषेयत्व का व्यभिचारी हो जाएगा । और यदि मनुष्यमात्र को कर्ता का प्रत्यक्ष न होने के आधार पर कर्ता के अनुभव को अमान्य किया जाएगा तो अर्धादर्श' सर्वश से भिन्न मनुष्य को सर्वप्रत्यक्षाभाव का ज्ञान न हो सकने से किसी के भी कर्ता के अनुभव को भी अमान्य न किया जा सकेगा। अतः वेद के कर्तृस्मरण के मान्य हो सकने से वेद में कर्तृस्मरणाभाव का उपपादन नहीं किया जा सकता । 2 दूसरी बात यह है कि 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे पूर्व में हिरण्यगर्भ हुए जिसने वेद की रचना की इस आगम से एवं वेद की विशिष्ट रचनारूप कार्य से सम्पाच अनुमान द्वारा 1 कर्ता का अनुभव सुकर होने से, वेद कर्ता के अनुभव का अभाव सिद्ध न होने से, तन्मूलक वेदकर्ता का स्मरण भी सम्भव होने से वेद में कर्तृस्मरणाभाव की उत्पत्ति नहीं की जा सकती । यह भी ज्ञातव्य है कि जिस के कर्ता का प्रत्यक्ष नहीं है, उस के कर्ता के अनुभव का अभाव मान कर यदि उस के स्मरण को अस्वीकृत किया जाएगा तो किसी भी छिन्नमूल स्मरण वाले विषय में यह कहना सम्भव नहीं होगा कि उस के कर्ता का स्मरण हो सकता है - क्योंकि उसके कर्ता का प्रत्यक्ष न होने से उस के कर्ता का अनुभव सिद्ध नहीं होगा और जिस का अनुभव न होगा उस का स्मरण भी न होगा। क्योंकि अनुभव स्मरण का मूल कारण होता है । कारण के अभाव से कार्य का अभाव होता है, यह नियम है । [ ' स्मृतियोग्य रहते हुए स्मृतिविषयत्वाभाव' हेतु का निरसन ] यदि यह कहा जाय कि " स्मरणयोग्यकर्तृकत्व विशिष्ट अस्मर्यमाणकर्तृस्व से अपौरुषेयत्व का अनुमान किया जा सकता है, क्योंकि वह उक्त पौरुष वाक्यों में अपौरुषेयत्व का व्यभिचारी नहीं है । आशय यह है कि कर्ता होने पर जिस के कर्ता के स्मरण का आपादान हो सके, वही स्मरणयोग्यकर्तृक होता है । उक्त पौरुषेय वाक्य का कर्ता होने पर भी उस के कर्तृस्मरण का अपादान नहीं होता क्योंकि उस के कर्ता के अस्तित्व में कर्तृस्मरण की व्याप्ति नहीं है । अतः उस में स्मरणयोग्यकर्तृकत्व न होने से उस में उक्त हेतु का भी अभाव है। वेद में उक्त हेतु की स्वरूपासिद्धि भी नहीं है क्योंकि उस का कर्ता होने पर उस के कर्तृस्मरण का आपादन
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy