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________________ २६ ] पू. /पं. १२९/८ १२९/२२ में अशुद्ध मिनिवेशत: १२९।२८ ||३९.३ ६३२/१ १३२।२६ तह १३४।३ तद्युक्तम. १३४/११ च १३४। ७ युक्ति मंगत मन्यायादा १३९।१८ शब्द की १३२।२८ ध्वनि का १३९२८ प्रतित કાર્ व्यञ्जकत्व २४३।१९ नियता १४५/२७ भी जन्यता के अपलाप की कारिभिः १४७/३ १५८०३४ दशा १७१/२ उक्त विजा १७१।२२ प्रत्यासक्ति १७३/२२ वेद की १७५/१२ कर्तविशेषे १७६१२ कर्तृत्वेना १७६/५ 'अभ्यास'ऐव १८०/२४ मुखाधीत રા 4 १८२।१० वैदे १८४२६ सर्वेश सिद्ध કાટ येह शुद्ध भिनिवेशतः लोक में L ॥३१॥ मग्न्यादा नहीं तदयुक्तम द्रव्य युक्तिसंगत शब्द के ध्वनि के प्रतीत व्यञ्जकत्वे नित्यता जग्यता के अपलाप की भी रकारिभिः दिशा उक्त विजा प्रत्यासक्त वेद के कर्तृविशेषे कर्तृवेना अभ्यास ० ' पक्ष मुखाधीन नोट: इस ८ वीं पंति को ४६ वे श्लोक के पूर्व में समझना दे खवंश सिद्धि दृष्ट पृ./पं. अशुद्ध १९१/७ धर्म १९२/१४ बचन १९३/१३ रूपदेश १९४११६ आगम सर्वश १९४/२८ वैयध्वं १९५/६४ प्रस्तुत १९५/१५ आगम में १९०३२१ पदार्थों १९५।२७ ओज १९५/२९ अद्भासित १९८/२१ केचली की १९८/२९ अनुमत १९९/९ जाता है, १९९२८ भगवान का २००१९ स्वाभ्यं २००१२२ विस्मृश्य २०२१५ २०२२८ २०७ ३० २०९/९ सभावनया प्रवृत्तिप्रधान से पग़घाल जिन २११९१८ क्षुद्र २१६।२ द्वारा, २१६५ कहला २९८।१२ दिन्थि २१९/४ मुमभजिणो २१९/११ अनुसार इत्यादि गाथा के २२११८ कमणां २२१।२५ आगम में કટાફ धर्मावस्था शुद्ध धम वचन रुपदेश सर्वश वैयर्थ्य ६४ चीं ( भागम में ) ? पदार्थों ओजन उद्भासित केवली के अभिमत जाते हैं, भगवान का स्वाभ्यां ऽविमृश्य संभावनया प्रवृत्तिप्रधान से पस्चात जिने शुद्ध द्वारा कवला दिन्द्रिय मुसमजिणो इत्यादि गाथा के अनुसार कर्मणां आगम के धर्मव्यवस्था ( पृ १८४)
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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