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गृह
आगम से धर्माधर्म की व्यवस्था निर्दोष केवलशानी का कवलाहार अमान्य-दिग. पूर्वपक्ष स्वाभाविक आहारग्रहण की कल्पना अनुचित सूत्र से भी केवली का कवलाहार
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असिन्द्र
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अभ्यास आदि वाक्यवत् वेद में भी कर्तृस्मरण में थैमत्य १७६ किसी एक को प्रत्यक्ष न होने मात्र से उसका अभाव असिद्ध 'स्मृतियोग्य रहते हुए स्मृति. विषयत्वाभाय देतु का निरसन १७८ उपदेशकर्ता के स्मरणपूर्वक प्रवृत्ति का नियम असिद्ध १७९ आचाभिमत वेदाध्ययन में गुरुमुखाधीन वेदाध्ययनपूर्वकस्य की असिद्धि वेदमन्त्रों में अपौरुषेयत्वसाधक सामर्थ्य हेतु साध्यद्रोही असर्वज्ञ का सर्वशरूप में अर्थवाद अनुचित सर्वशसिद्धि वार्ता उपसंहार सर्वत्र और तचित आगम की प्रतीति दुर्लभ-बोंद्ध विज्ञान में गुणपूर्वकत्य साधक अनुमान १८६ परमप्रकृष्ट गुणसाधक अनुमान रागादि के हास से अतिशयसिद्धि १८७ संशय का उच्छेद और पूर्यापर अध्याघात से अतिशय का पता अतीन्द्रिय अर्थों के प्रातिभशान का अस्तित्व गुणवान् पुरुष में प्राति. भातिशय अविरुद्ध अदृष्ट वस्तु में विसंवाद की आशंका का निराकरण आगमषचन में धुणाक्षरन्याय और विसंवाद का निरत्तन स्वयं अज्ञ और कथिता पुरुष आगमघोध का अधिकारी
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केलि को कवलाहार का संभव न्यायसि-प्रवे० उत्तरपक्ष केवलि की उपवेशनादि क्रिया सीर्फ नियतिकृत-पूर्वपक्ष आगमयायवादी के मत का निरसन-उत्सरपक्ष प्रयल के अभाष में चेष्टा के अभाव की आपत्ति केवली में क्लेश होने में कोई विरोध नहीं है मातितुल्यता के आध चार विकल्पों का निरसन अंतिम तीन विकल्प का निरसन क्षुधा यह रागादि असा दोष होने की शंका-समाधान पापप्रकृति का रसघात हो जाने से दुःखाभाव शंका का उत्तर समुद्घातक्रिया निष्फलत्वापत्ति २०७ असातावेदनीय का अभिभव संभव नहीं दिगम्बर मत में 'एकादश जिने' सत्र की अनुपपत्ति केवली अतीन्द्रिय होने पर भी सुख दुःख का सम्भव
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