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विषय भूत पश्चीकरण प्रक्रिया
संन्यास श्रवणादि के अंग होने का समर्थन पंचीकरण के सम्बन्ध में मतान्तर ६१ संन्यास ज्ञानांग न होने का कारण
जन्मान्तरीय संन्यास भी उपयोगी केवल साक्षि द्वारा आकाश की अपरोक्षता ६२
से श्रवणादि अधिकार आकाश-अपरोक्ष न होने की पूनःशंका
सिद्धि का असंभव
८२ केशादिसंकीर्णता का प्रत्यक्ष भ्रम कैसे? ६३ पातुर संन्यास वाक्य से किसका विधान ? ८३ का० ३-अविद्या से ब्रह्म में भेव प्रतीति ६४ , , से कमन्तिर का विधान ८३ अध्ययन विधि नित्य न होने की आशंका ६५ . का फल क्या? .... ८४ ऋणश्रुति और शूद्रत्व-स्मृति से बेदाध्ययन 'प्राप्य पुण्य कृतान्' इस बचन का विषय की फलतः नित्यता सिद्धि .... ६६ कौन ? स्वरूपनित्यत्व किसको कहते हैं? ६६ स्मृति से आतुर संन्यास फल का निर्णय ८५ वेदाध्ययन का फल वेदप्राप्ति ....
यद्यातुर बाक्य से विहित संन्यास में आपात यानी संशयाविरोध
मतान्तर प्रमानिश्चय प्रतिबन्धकता में दोष विशेष वाणी और मन अर्थतः प्राप्त होने की शंका की उत्तेजकता ....
और उत्तर अप्रामाण्यज्ञान को उत्तेजकता असं भवित ६९ ब्रह्मलोक प्राप्ति आदि संन्यास का फल नहीं ८७ असंभावना दोष रहने पर संदेह का संभव ६६
श्रवण-मनन-निदिध्यासन की व्याख्या विहित कर्मों से अन्तःकरणशुद्धि की मीमांसा ७०
., आदि का विधि नियमात्मक है ०९ संयोग पृथक्त्व. न्याय से काम्यकमों से ।
तत्-त्वम् पदों का वाच्यार्थ .... अन्तःकरणशुद्धि की सिद्धि .... ७०
तत्वमसि वाक्य में सामानाधिकरण्यमीमांसा ९० अन्तःकरण शुद्धि फलक यज्ञादि काम्यकर्म । यज्ञादि से भिन्न है ?..... .... ७१
'तत्त्वमसि' वाक्य में शुद्ध चैतन्य में लक्षणा ९२ कर्मान्तर की कल्पना अस्वीकार्य..... ७१ विशेष्यरूप वाच्य एक देश में तत्-त्वम् पदों यज्ञदानादि कर्तव्य विकल्परूप से या समुच्चय ।
की लक्षणा रूप से? .....
शक्ति से शुद्ध चैतन्योपस्थिति का असभव ९२ समुच्चयरूप में यज्ञदानादि की कत्र्तव्यता ७३ , द्वारा उपस्थित अर्थों का मांशिक
धंयक्य से एक वाक्यता प्रस्तुत में नहीं ७३ वोघ अमान्य यज्ञदानादि अनेक कर्म विधान में वाक्यभेद
गो-पद की लक्षणा के प्रयोजन की शंका प्रसक्ति
और उत्तर यशदानादि का यथासम्भव समुश्चय ७५
आत्मज्ञान से कर्म बन्धनों का विनाश सम्भवत्समुच्चय की दूसरे ढंग से उपपत्ति ७६ । तत्त्वज्ञान के बाद त्वरित देहनाश में नित्यानित्यविवेक-विराग-शमादि-मुमुक्षा ७७
प्रारब्ध का प्रतिबन्ध .... ९४ केवल मुमुक्षा अधिकार सम्पादक नहीं है ७८
तत्त्वज्ञानी की अन्तकालीन दशा.... संन्यास अधिकारिविशेषण माने या नहीं? ७६ मृत्युकाल में फलोन्मुख कर्मों की प्रारब्धता ६६
॥ श्रवणादि का अंग नहीं हो सकता ७६ तत्वज्ञानी को नये देहधारण की अनुपपत्ति ९६
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