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+ विषयानुक्रम ॥
विषय
पृष्ठ वर्द्धमानस्वामी की स्तवना पार्श्वनाथ प्रभु की ,, जिनवाणी की उपासना का० १-वेदान्तमत के सिद्धान्त .... अद्वैत शब्द की विविध व्युत्पत्तियो.... एकमात्र ब्रह्म सत्ता का उपपादन .... ब्रह्म में स्वगतद्वितीयभेदशून्यता .... भेद वस्तुस्वभावरूप या अर्थान्तररूप होने पर। द्वैत की सिद्धि ... .... भेदात्मक स्वभाव का व्यवस्थापक मात्र हेतु नहीं है अर्थक्रिया में प्रतियोगि निरपेक्षता .... पुत्रत्व-पितृत्वादि भेद कल्पित ... ६ अर्थ क्रिया भेद से वस्तुभेद असिद्ध .... ६ 'घट: सन्' प्रत्यक्ष से सन्मात्ररूपता की सिद्धी ७ घटाभेद सिद्ध न होने से उसका निषेध अशक्य ७ आकाशपुष्प के निषेध में मतान्तर .... ८ भेद-अभेद में भेद मिथ्या पृथ्वी में गन्धवत्ता की तरह चित् में ही सत्ता ६ आत्मतत्त्व के दर्शन से प्रपञ्च का भ्रमज्ञान ६ आत्माऽज्ञान जन्यतावच्छेदक दृश्य दर्शनत्व १० ब्रह्म के साथ प्रपञ्च का काल्पनिक तावात्म्य १० प्रपञ्च सदसद्रूप से अनिर्वचनीय .... ११ रज्जु में भासित सर्प की अन्यत्र सत्ता में प्रमाणाभाव रज्जुसपं-वास्तवसर्प दो में एक अवाच्य, अन्य वाच्य कैसे? .... अनुभवमात्र की वस्तु साधकता में लाघव १२ देशान्तर स्थित सर्प की रज्जु में प्रतीति मानने में गौरव विशेषादर्शन की अपेक्षा विशेष विषयक अज्ञान की कारणता में लाघव
विषय स्वाश्रय में स्थात्यन्ताभाव विरुद्ध होने का आक्षेप रज्जुसर्प व्यवहार प्राप्त होने की आपत्ति मिथ्या ब्रह्म सवजातीय-विजातीयभेद शून्य अन्तःकरणभेद से सुखादिवैचित्र्य की उपपत्ति १५ सर्वग्राहो नित्य एकात्मस्वरूप म्फुरण की सिद्धि समस्त कार्यों का उपादान कारण एक नित्य ज्ञान अज्ञान सापक प्रतीतियों 'अर्थ न जानामि' प्रतीति की विषय मीमांसा १७ अज्ञान आश्रय और विषय चतन्य हैविवरणाचार्य मत ..... चैतन्य निष्ठावरण साक्षि से सिद्ध .... "अज्ञातो घट: इस व्यवहार की उपपत्ति का प्रश्न शुक्ति-रजत में बाघ व्यवहार की उपपत्ति का
बीज
बाध और निवृत्ति के बीच अंतर .... २० 'अज्ञातो घट:' की उपपत्ति में अन्य पक्ष २० "अज्ञातो घटः' की उपपत्ति में तृतीय पक्ष २२
" " " तुलाज्ञानवादी पक्ष २२ मूलाज्ञानशक्तिरूप तूलाज्ञान अनादि है-इसका खण्डन अज्ञान का आश्रय जीव, विषय ब्रह्म परमार्थसत्त्व, व्यवहारसत्त्व, प्रतिभास सत्त्व प्रतीतिजनक तीन शक्तियाँ .... २६ तत्वज्ञान के बाद प्रारब्धक्षय होने पर अज्ञान की निबत्ति .... .... २७ जीवेश्वरादि प्रश्न विषय में बिवरणाचार्यमत २८ अविद्यावच्छिन्न चैतन्यरूपजीव की आशंका २८