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[ शास्त्रवा००७०३
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जम्यतावक ही जाति होती है घटादि की जमकतावकवक जाति नहीं होली | अतः घटको मामा मानने पर संयोगमिष्यथ कनकतावच्छेदकजाति में विभिन्नश्व कल्पनाप्रयुक्त गौरव नहीं हो सकता घटादि के प्रति संयोगविशेष को कारण न मानने पर भी कपालद्वय के संयोगविशेष से जहाँ यान्सर की जाति होती है यहाँ घटोत्पति को प्रापति नहीं की जा सकती। क्योंकि कपालनाम से बहुत किये जानेवाले जिन थ्यों के संयोगविशेष से द्रव्यान्तर की उत्पत्ति होती है उनमें कपालव हो नहीं है । अतः उन में घटोत्पत्ति का प्रापावन नहीं किया जा सकता, क्योंकि घट के प्रति कपाल कारण होता है और वे द्रष्य कपाल से भिन्न हैं ।" तो यह ठीक नहीं है। क्योंकि जिन कपालine asों के संयोगविघोष से ग्रभ्यान्तर को उत्पति होती है उस संयोग का और दयातर का नाश हो जाने पर उन्हों उथ्यों के संयोगविशेष से घटोत्पलि देखी जाती है। भ्रतः उन्हें कपालभित्र नहीं कहा जा सकता
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[ अवयव पृथक होने पर घटोत्पत्ति शक्य न होने की शंका और उत्तर ]
इसके प्रत्यु में यवि यह कहा जाय कि कपालक जिन द्रव्यों के संयोग से रुपान्तर को उत्पति होती है, के उस संयोग का प्रयान्तर का साया हो कर उनके पुनः संयोगविशेष से जय टोपत होती है तब उन मों से धणुकादि यदि के अलग हो जाने सेयार की उत्पत्ति होती है और उस खण्ड में कलश्य जाति रहती है। अतः उनके संयोग से उनमें पत्ति होना उचित है। किन्तु हृणुकादि यत्किचिदवयों के पृमक होने के पूर्व जम मों में कपालत्व नहीं रहता अतः जनके संयोग से इभ्यान्सर की उत्पत्ति के समय घटोत का मापावन नहीं हो सकता" तो यह ठीक नहीं है क्योंकि 'यत्किंचिवक्त्रों के पृथक हो जाने से mr की उत्पति होती है अथवा ग्रहियों के संयोग होने से महाकाल की उत्पत्ति होती है' इसमें कोई गिना नहीं है। तथा यह कहा नहीं जा सकता कि 'उक्त दोनों में मिगमला न होने से दोनों ही पक्ष मान्य हो सकते हैं । कारण, कहाँ तोकिदियों के पृथक होने से करा की, और कहीं यत्किचिदपत्रों के संश्लेष से माकपा की उत्पति होती है और सतहों में उत्पन्न होनेवाले कपाल के अथवा महाकपालय के संयोग से घट को उत्पत्ति होती है क्योंकि शुकावि परिकविषयों के पृथक होने से उत्पन्न होने वाले में अथवा sure प्रति यत्किमित्रों के संयोग से उत्पन्न होनेवाले समय में कपालव न मामने पर कपाल एव का कोई नियामक हो सकेगा ।
| ड कपाल में कपालख मानना आवश्यक ]
दूसरी बात यह है कि धणुकावि परिकविषयों के पुत्र होने पर अथवा संयोग होने पर जिस से कफालालर की उत्पत्ति होती है उस में कपालस्य मानना आवश्यक है क्योंकि यदि उसे कपाल न माना जायगा तो उस से कपालान्तर की उत्पत्ति न हो सकेगी, क्योंकि खण्डकपाल के प्रति महाकपालमा और महापाल के प्रति लघुकपाल के अवयवों में अवयवान्तर का संयोग कारण होता है। अतः यहादि के प्रति भी संयोगविशेष को कारण मानना आवश्यक होने से घट के विभिन्नत्वपक्ष में संयोग मिष्ठ घटजनकतावच्छेदक जाति में जो विभिश्व का आपावन किया गया है वह दुमिवार है। यह भी शातव्य है कि घटस्य के विभित्यपक्ष में पटसामान्य के प्रति कपालरूप से कपाल को