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________________ [ शास्त्रवासी० ० ७० ६ कुछ ऐसे भो विज्ञान है जो 'एक' पत्र को लक्षणघटक मानते हुये उसका अर्थ 'अलहायम्' ऐसा करते हैं। 'असहायम्' काम से अभ्यनिरपेक्ष। उनके मत से उपलक्षण में अनेकसमवेतश्व का अर्थ है अनेकत्व अर्थात् काधारकत्व, यह प्रभाव और समवाय में भी है, अतः निरपत्वसहित उसने मात्र को लक्षण मानने पर अत्यन्ताभाव और समदाय में अतिव्याप्ति होती है । अत: एकपन से अन्य निरपेक्षस्य का निवेश करना आवश्यक है। यह पहला में नहीं हो सकती क्योंकि अनाव प्रतियोगितापेक्ष और समवाय सम्बन्धीसापेक्ष होने से अभ्यनिरपेक्ष नहीं होता है। ३० [ नित्यत्वघटित लक्षण में अध्यामिदोष ] सामान्य का नित्यत्वपटिस यह लक्षण अध्याप्तिग्रस्त हो जाता है क्योंकि जैसे श्यामस्व ( रामरूप ) - रस्कश्व ( रक्कम) आणि उपाधिओं के उत्पाद और विनाश का अनुभव होने से उन में निश्व प्रसिद्ध है, उसी प्रकार बधिश्य और पत्र आदि के भी साक्षात् उस्पाव बिनादा का अनुभव होने से उनमें भी नित्याव असिद्ध है। यदि यह कहा जाय कि 'दुग्ध और दधि के ही उत्पाद विनाश का अनुभव होता है-दधिरव और दुग्बत्य के उत्पाद विनाश का अनुभव नहीं होता' तो यह कहना उचित नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा मानने पर श्यामश्व और रक्तत्व के विषय में भी यह कह जा सकता है कि श्याम और रक्त के ही उत्पत्ति-विनाश का अनुभव होता है-श्यामश्य और रक्तश्व के उत्पाद - विनाश का अनुभव नहीं होता । प्रसः वयामत्व और रक्तत्व में भीति को प्रसक्ति होगी । [ श्यामादि का उत्पादातुमा भ्रान्त होने की शंका ] याम और रक्त के सम्बन्ध में यह कहा जाय कि "श्यामावि (यानी श्यामरूपवान्आ)ि के को उत्पाद का अनुभव होता है वह भ्रम है- क्योंकि जिस समय श्यामादि में उत्पादादि का अनुनय दिखाया जाता है उस समय श्याम आदि के उपाय कारणों का अभाव होता है । जैसे कोई मिट्टी का बना हुआ वर्तन पकाने पर श्याम हो जाता है और कोई रक्त हो जाता है और उसके फलिस्वरूप ध्याम उत्पन्न हुआ' 'रक्त उत्पन्न हुआ ऐसा अनुभव होता है। किन्तु उस समय श्याम अथवा रक्त की उत्पत्ति नहीं मानी जा सकती क्योंकि उस समय हो श्याम और रक्त स्वरूप में प्रतोत होता है वह पहले से ही है। पाक से केवल उसके मूलवर्ण का परिवर्तन होकर जल गये वर्ण का उदय होता है उस समय उस व्रज्य की उत्पत्ति नहीं होती। क्योंकि असम में वस्तु प्रागभाव भी वस्तु का कारण होता है किन्तु उस लभय वस्तु का प्रागभाव नहीं रहता उस वस्तु के पहले हो उत्पन्न हो जाने से उसका प्राय पहले ही नष्ट हो जाता है। तथा मिट्टी के बने घर प्राधि पात्र दण्ड चह-कुमाल आदि के संनिधान में उत्पन्न होते हैं। पाक के समय उनका संविधान नहीं होता अतः श्यामद की उत्पत्ति उस समय नहीं मानी जा सकती। अल एव श्यामाधि के उत्पादावि का अनुभव निःसन्देह भ्रम है।" [ खण्डघटत् श्यामादिवट का उत्पाद प्रामाणिक ] feng यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि जले पूर्ण के किसी अंदा का मत होने पर ausifar के बिना भी घट की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार दण्डावि के अभाव में भी श्यामघटावि की उत्पत्ति हो सकती है, तथा जैसे घट के दण्डादि सापेक्ष होते हुये भी जाति के अभाव में भी
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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