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में एककालिक होते हैं। अतः परस्पर में अभि भी हैं। क्योंकि एकदेशस्य एककालिक पदार्थों में परस्पर अमेब होता है ।
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एक ही वस्तु के उत्पादादि त्रय उपरोक्त प्रकार से परस्पर में कालमेव से कथाभित्र होने से पव-विनाश-स्थिति तथा वर्तमान, जूस और भविष्यकाल तथा भेद और अभेद से अनेक भंगों को निष्पत्ति होती है जो इस प्रकार है
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[ उत्पादादि जय के अनेक मंगों का निरूपण ]
(१) मृद्रव्य का घटात्मना उत्पाद वर्त्तमानकाल में नाश और स्थिति से मित्र है। (२) मुद्रण्य का त्मना उत्पाद वर्तमानकाल के विनाश और स्थिति से अभिन्न है । (३) घट को उत्पत्ति भूतकाल में बिनाश और स्थिति से भिन्न है।
(४) घट की उत्पत्ति भूतकाल में बिताया और स्थिति से अभिन्न है । (५) घटक त भविष्यकाल में स्थिति और विनाश से मिल है। (६) घट की उत्पत्ति भविष्यकाल में स्थिति और विनाश से अभिन्न है ।
इस प्रकार उत्पत्ति के स्थान में विनाश को लेने से छः मङ्ग और स्थिति को लेने से छः मङ्ग की मिस हो सकती है ।
इनों का तात्पर्यार्थ यह है कि प्रथम भ में मुष्य का घटात्मना वर्तमानकालीनोत्पाव यह उत्पत्ति अनवकालसम्बन्धरूप स्थिति और स्वनाम दोनों से भिकालिक होने से भिन्न है । द्वितीय भङ्ग में घट का वर्तमानकालीनोत्पाद उत्पादकालाय स्थिस्थिति से तथा कुलनाश से प्रभि है ।
तृतीयमङ्ग में उत्पलवेश से ओ मुलकालीन घटोत्शव है वह अनुप वेश से स्वस्थितिले भिन्न है तथा स्वनाश से भि है।
चतुर्थभङ्ग में अतीतोपादावच्छिष्टस्वस्थिति से और कुलनाश से उत्पन्न देश से भूलकालोनोस्पाव अभिन्न है ।
मम में अनुपम देश मे जो घटोत्व है यह अतीतोत्पावावटि स्वस्थिति से भिन है और स्वनाश से मिल है ।
षण्म में अनुभवेश से घटोत्पाद अनुपनन स्थिति पर कुलना से अमित्र है । इसी प्रकार विनाश और स्थिति के साथ भी भड़ों की कल्पना की जा सकती है ।
कार, एक हो वस्तु उत्पान ध्य- श्रध्यात्मक और प्रतीत वर्तमान भावीकालात्मक होने से अनन्तपर्यायों से युक्त होती है ।
मन्काले भवतोऽनन्तपर्यायात्मक द्रव्यस्योपपत्ता वप्येक क्षणे कथं तदुपपत्तिः ? इति शंकनीयम् एकक्षणेऽप्यनन्तानामुत्पादानां तत्समानां विगमानां वभियत स्थितीन च संभवात् । तथाहि पर्दैवानन्तानन्तप्रदेशिकाहार भाव परिणत पुढलोपयोगोपजात र रुधिरादिपरिण त( १ ति )वशाविर्भूतशिराऽङ्गुल्यायङ्गोपाङ्ग भाव परिणत स्थूल सूक्ष्म-सूक्ष्मतरादिभिश्रावयष्यात्म