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[ शास्त्रवाहित०७ श्लोक ४०-४१
मेव या प्रभेद को सिद्ध माना जायगा तो अभेदसह मेव किंवा भेवसह अभेद का केवल मेद और अमेव की सिद्धि से हो ध्याधाप्त हो जाने के कारण एकान्तवादी के विकल्प की उपपत्ति नहीं हो सकती । दूसरी बात यह कि वास्तव में केवल मेद और प्रभेद की सिद्धि न होगी किन्तु सिद्धि का साभास मात्र होगा अतः आभास सिद्धि दोष से वस्तु का दूषित होना सम्भव नहीं हो सकता ।।३९।।
इदमेवाहमूलम्-येनाकारेण भेदः किं तेनासावेव किं वयम् ।।
असत्वात्केवलस्येह सतश्च कथितत्वतः ॥ ४०॥ येनाकारेण येन स्वभावेन भेदः, किं तेनासावेव-भेद एव उत अयम् भेदश्चाभेदश्येति !, आद्य एकान्तः द्वितीये व्यतिकर इति भावः, एतद् विकल्पनं 'कुतः' इति प्राक्तनेन योगः १ इत्याह--इह प्रक्रमे, केवलस्य भेदस्याऽसत्त्वात-असिद्धत्वात् सतश्च-सिद्धस्य च कथितत्वतः उक्तशवलस्वभावत्वात् । ततो निर्विषयाः सर्वे विकन्पा इति भावः ॥ ४० ॥
[एकान्तवादीकृत विकल्पों में अर्थशून्यता] उक्त बात को ही ४० धीं कारिका में और स्पष्ट शब्दों में कहा गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है-प्रश्न यह होता है कि जिस स्वभाव से भेद रहता है क्या उस स्वभाव से केवल भेव हो रहता है अमवा मेद-अमेव दोनों रहते हैं ? । यदि पहला पक्ष मामा जायगा तो एकान्तवाद की आवृप्ति होगी और पवि दूसरा पक्ष माना जायगा तो ध्यतिकर होगा अर्थात भेद और अभेद में कोई कोई अन्तर न रह जायगा। किंतु यह विकल्प कैसे हो सकता है ? क्योंकि केवल मेद असिद्ध है और जो मेद सिद्ध है वह पूर्वोक्त रीति से शबल-प्रभेद मिधित है इसलिए एकान्तवादी के उक्त सभी विकल्प निविषयक हैं ।। ४० ॥
उपचयमाइमूलम्-यतश्च तत्प्रमाणेन गम्यते शुभयात्मकम् ।
अतोऽपि जातिमात्रं तदनवस्थादिकल्पनम् ॥ ४१ ॥ यतश्च तत्-अधिकृतयस्तु प्रमाणेन प्रत्यक्षेण हि-निश्चितम् , उभयात्मकं जात्यन्तरापनभेदाभेदभाजनम् गम्यते, अतोऽपि तत्-परोक्तम् इहानवस्थादिकल्पन जातिमात्रम् नियुक्तिकविकल्पमात्रम् , प्रत्यक्षबाधात् । अन्यथा घटादेरपि विकल्पविशीणतया शून्यतापातादिति ॥४१॥
[एकान्तबादी के विकल्प युक्तिशून्य ] ४१ वौं कारिका में पूर्वोक्त का निष्कर्ष बताया गया है । कारिका का अर्थ इस प्रकार हैबिचार्यमाण वस्तु प्रमाण द्वारा उभयात्मक अर्थात विलक्षण भेदाभेद के आत्रय रूप में सिद्ध है, इसलिए एकान्तवादी द्वारा उद्भावित अमवस्था आदि दोषों का विकल्प जातिमात्र है अर्थात जुठे उत्तर के समान है। क्योंकि उसके पक्ष में उपयुक्त युक्ति नहीं है, उलटा, विलक्षण-भेदाभेव के प्राश्रमभूत