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स्यायन रोका एवं हिन्दी विवेचन ]
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बस्या होने के बाद ही जलाहरग क्रिया होती है। निक्षपों के सम्बन्ध में विस्तृत बिमार विघोषाधयकभाग्य आदि प्रयों में राष्टध्य है।
अत्रेदं विधार्यते-ननु नामादीना सर्षवस्तुभ्यापित्वं न वा ? आधे व्यभिचारः, अनमिलाप्यमावेषु नामनिक्षेपायचे, दृष्यजीव-जन्यद्रन्यायसिद्धयाऽभिलाष्यभावन्यापिताथा अपि वक्तुमशक्यत्वाच । अन्त्ये ""जस्थ वि य ए याणिज्जा, चउकय निपिसवे तत्व" इति बन्न विरोधः, अत्र यचस्पदयोाप्त्यभिप्रायेणोक्तेरिति चेत् ।
___ अन वदन्ति-तत्तद्वयभिचारस्थानान्यत्वविशेषणात् न दोषः, संभवत्र्याप्त्यभिप्रायेणय 'यत्र तत्र' इत्युक्तेः । तदिदमुक्तं नश्यार्थदीकाकृता "यचौकस्मिन् न संभवति नैतावता भवत्यध्यापिता" इति । अपरे वा केलिप्रज्ञारूपमेष नामानभिलाप्यभावेष्यस्ति, ट्रव्यजीवथ मनुष्यादिरेश, भाविदेवादिजीवपर्याय हेतुन्यात् । द्रव्यदृश्यमपि मृदादिरेष, आदिष्टद्रव्यखाना घटादिपर्यायाण हेतुत्वाव" इति । एतच मतं नातिरमणीयम , व्याथिकेन शब्दपुद्गलरूपस्यैष नाम्नोऽभ्युपगमात , मनुष्यादीना ट्रन्यजीयत्त्वं च सिद्धस्यैध भावजीयत्वप्रसगाव , आदिधद्रव्यहेतुइव्यद्रव्योपगमे भाषद्रव्योच्छेदप्रसङ्गाश्चेति । "गुण-पर्यायवियुक्तः प्रज्ञास्थापितो द्रव्यजीया" इस्यन्येपा मतस्तदपि न सूचमम् , सतां गुण-पर्यायाणा पुद्धयाऽपनयनस्य कन मशक्यत्वात् । न हि यादृच्छिकझानाऽयताऽर्थपरिणतिरस्ति । "जीवशब्दार्थझस्तग्रानुपयुफ्तः, जीवशब्दार्थशस्य शरीरं पा जीवरहितं द्रव्यजीत्र इनि नाऽव्यापिता नामादीनाम्' इत्यपि यदन्ति ।
नामादिनिक्षेप की सर्ववस्सुव्यापकता के ऊपर आक्षेप-समाधान ] निपावि के सम्बन्ध में यह विचार किया जाता है. कोई आक्षेप करते हैं-वामाथि निक्षेप समस्त वस्तु के व्यापक हैं अथवा नहीं। प्रथयपक्ष में व्यभिचार है क्योंकि जो भाव अनमिलाप होत है उनका माममिःक्षेप नहीं हो सकता । इसी प्रकार नामादि मियों को मिलाप्य समस्त बस्तुओं का मो ध्यापक नहीं कहा जा सकता क्योंकि जीप और द्रव्य में परिक्षण प्रसिद्ध है, क्योंकि ब्रम्पजीव-जीव का कारणण्य एवं प्रध्यप्रणय पानी द्रव्य का कारण द्रश्य असिन शोने से जीव और द्रव्य में यात क्षेप की प्रवृत्ति नहीं हो सकती। 'नामादिनि अप समस्त वस्तु के व्यापक नहीं है- यह वित्तीय पक्ष मी मान्य नहीं हो सकता क्योंकि-अप विय ग' इस अनुयोगद्वार सूत्र का विरोध होता है। सूत्र में यह स्पष्ट कहा गया है कि-जिस वस्तु में उक्त पार निक्षों से प्रतरिक्त निक्षेप का शान न हो उस वस्तु में कम से कम उक्त चारों निःक्षेपों का प्रवर्तन कर उसका निरूपण करना चाहिये । इस प्रकार सूत्र में यह और सत् एव के उल्लेख रो नामादिनिःक्षेप की वस्तु व्यापकता में पत्रकार के अभिप्राय का असंविध बोध होता है। १.पाच च न जानीपान चतुष्क निक्षिपेत् तत्र । बत्थ दिलेसं जागइ । वि. आ. भा. २६१८ ] अस्थ य जं जागेज्जा [ अनुयोगद्वार १५