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स्या० क० टीका एवं हिन्दी विवेचन ]
इत्यपि तुच्छम् मनस्त्वात्यन्ताभावादेरप्रत्यक्षत्वापातात् घटादौ परमाणुभेदादेः प्रत्यक्षतापाताच्चेति ।
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[ भेद और संसर्गाभाव के ग्रह की भिन्न भिन्न योग्यता में आपत्ति ]
यह कहना भी अत्यन्त तुच्छ है कि 'प्रत्यक्ष योग्य प्रतियोगित्व' संसर्गाभाव के प्रत्यक्ष की योग्यता है और प्रत्यक्षयोग्याधिकरण वृत्तित्व' अन्योन्याभाव के प्रत्यक्ष की योग्यता है । क्योंकि, यदि योग्यत्रतियोगिक संसर्गाभाव को हो प्रत्यक्ष योग्य माना जायगा तो घटादि में मनस्व के प्रत्यन्ताभाव का प्रत्यक्ष नहीं हो सकेगा । जब कि घटादि में मनस्त्व जाति के होने पर उसमें प्रत्यक्ष योग्यत्व सम्भय होने से घटादि में उसके अत्यन्ताभाव का प्रत्यक्ष सिद्धान्त सम्मत है। एवं योग्याकिरणवृत्तित्व ही यदि अन्योन्याभाव की योग्यता का नियामक होगा तो घटादि में परमाणुभेव के प्रत्यक्ष को भी आपत्ति होनी । जब बाद में परमाणुपरिमाणरूप परमाणुत्व में प्रत्यक्ष योग्यता सम्भव न होने से तदछिन प्रतियोगिताक परमाणुभेद का प्रत्यक्ष असैद्धान्तिक है ।
तस्माद् भावप्रत्यक्ष झाभावप्रत्यक्षेऽपि महत्त्वादीनां हेतुत्वाद् विशिष्य घटाभावप्रत्यक्ष आलोक संयोगादीनां हेतुता वाच्या, सापि वक्तुं न शक्यते, पेचकादिचाक्षुषे व्यभिचारात्, इति घटाभावाद्याकारे कुर्वद्र समनन्तरस्येनैव हेतुता युक्तेति चेत् ? न स्ववासनया कथंचित् स्वयं बाह्याभावानुभवेऽपि परं प्रति तत्साधनार्थं प्रयोगानुपपत्तेः तूष्णींभावेन कथायां निग्रहात्, बाह्यत्वस्य ज्ञानभिन्नत्वरूपस्यातीन्द्रियत्वेन तद्द्घटितघटोपलम्भस्य तु पिशाचव द्घटोपलम्भस्वापादयितुमशक्यत्वेन तदद्भावप्रत्यचस्यानुपपादनादिति दिक् ॥ ६ ॥
| अभाव प्रत्यक्ष में भी महत्त्वादि की कारणता ]
बौद्ध के मतानुसार उक्त विचार का निष्कर्ष यह फलित होता है कि जैसे भाव के प्रत्यक्ष में महत्वादि कारण होता है ऐसे अभाव के प्रत्यक्ष में भी महत्त्वादि कारण होता है। विशेषरूप से घटाभावादि के प्रत्यक्ष में तो झालोकसंयोगादि भी कारण होता है किन्तु प्रभावप्रत्यक्ष में उक्त योग्यतादि प्रयोजक नहीं है। इस निष्कर्ष के सम्बन्ध में भी बौद्ध का कहना है कि अन्यमतानुसार योग्यता के बारे में फलित किया गया यह निष्कर्ष भी ठीक नहीं है क्योंकि योगी के प्रत्यक्ष में महत्वादि को कारणता में ओर उलुक-बीडाल आदि के चाक्षुष प्रत्यक्ष में आलोक संयोगादि की कारणता में व्यभिचार है । अतः निर्दोष निष्कर्ष तो यही है कि घटाभावाद्याकारक तत्तत्प्रत्यक्ष में तत्तत्कुर्वद्रूपसमनन्तर प्रत्यय ही कारण हैं। अर्थात् जिस क्षण में यदाकार अभावप्रत्यक्ष होता है उस क्षण का पूर्ववर्ती समनन्तर प्रत्यय हो तत्प्रत्यक्षकुर्यद्रूपत्वेन तत्प्रत्यक्ष के प्रति कारण होता है । अतः समनन्तरप्रत्ययरूप कारण से बाह्यार्थ के अभाव का प्रत्यक्ष हो सकता है । प्रत एव बाह्यार्थ का अभाव प्रत्यक्षसिद्ध है उसमें प्रमाणान्तर के अन्वेषण की अपेक्षा नहीं है ।
[ बौद्ध त विस्तृत समालोचना की समीक्षा ]
व्याख्याकार का कहना है कि बौद्ध का यह कथन अत्यन्तयुक्ति शुन्य है क्योंकि उस की प्रक्रिया के अनुसार उन्हें स्वयं यथाकथञ्चित् बाह्यार्थ के अभाव का अनुभव हो सकता है कारण,