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[ शास्त्रवार्ता ० स्त० ५ इलो० ९
अवच्छेदक घटत्वत्व 'घटेतरावत्तित्वे सति सकलघटसमवेतत्व' रूप है उसकी कुक्षि में घटेतर अतोन्द्रिय पदार्थों का भी प्रवेश है और सकलघट का भी प्रवेश है जिसका एक साथ उपलभ सम्भव नहीं हो सकता । श्रतः घटत्वत्वविशिष्ट घटत्वरूप प्रतियोगी के लपलम्भ की असिद्धि होने से घटत्वस्वविशिष्ट घटत्व को सत्ता भो घटत्वत्व विशिष्ट घटत्व के उपलम्भ की व्याप्य नहीं हैं । शूद्र ब्राह्मणत्वाभाव के प्रत्यक्ष की आपत्ति तो कथमपि नहीं हो सकती, क्योंकि विशुद्धभातापितृजन्यत्वज्ञान भी ब्राह्मणत्वाभावप्रतियोगी ब्राह्मणत्व के उपलम्भ का एक कारण है किन्तु वह शूद्ररूप अभिकरण में वृत्ति न होने से वह शूद्रवृत्तिप्रतियोगी उपलम्भकातिरिक्त हो गया । अत एव उससे अविशेषित एवं शुद्रपारिकरण में वृत्ति जितने प्रतियोगी उपलम्भक हैं उतने मात्र से विशेषितबरह्मणत्व को सत्ता ब्राह्मणत्वोपलम्भ की व्याप्य नहीं है व्रत एवं उससे ब्राह्मणत्व का आपादन हो सकता है।
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[ आलोकनियतघटाभावप्रत्यक्ष की आपत्ति का वारण ]
यदि यह शंकर की जाय- "उक्त प्रकार से योग्यता और उसके फलस्वरूप उक्तरूप से कार्यकारणभाव मानने पर भी अन्धकार में आलोक नियत घट के प्रभाव प्रत्यक्ष की आपत्ति होगी, क्योंकि इस अभाव के आलोक नियतघटरूपप्रतियोगी की सत्ता घटोपलम्भ की व्याप्य है अतः अन्धकार में उस घट के सब से घटोपलम्भ का आपादन हो सकता है ।" तो इसका उत्तर यह है कि यदधिकरण में वृत्ति प्रतिपलम्भ से अतिरिक्त arecaiva किश्विद्विशिष्ट प्रतियोगितागत प्रतियोग्युपलम्भ की व्याप्यता में, निरुपाधिसहचार से अतिरिक्त प्रतियोभ्युपलम्भतिरूपितव्याप्ति के ग्राहक तर्क को तr faafक्षत है। अर्थात् योग्यता का स्वरूप यह है कि यदधिकरण में वृत्ति, प्रतियोगोपलम्भक से प्रतिरिक्तविशेषणानवच्छिन्नयत्किञ्चिद्विशिष्ट यदभावप्रतियोगी की सत्ता में प्रभाव के प्रतियोगी के उपलम्भ की व्याप्ति का ग्राहक निरुपाधिसहचारातिरिवत तर्क हो वह उस अधिकरण में प्रत्यक्षयोग्य होता है ।
योग्यता का इस प्रकार निर्वचन करने पर अन्धकार में लोकनियतघटाभाव के प्रत्यक्ष की प्रपत्ति नहीं होगी क्योंकि श्रन्धकारव्याप्तदेशवृत्तिप्रतियोगि उपलम्भकातिरिक्तविशेषण प्रालोक है । अतः आलोक से प्रविशेषित और उक्त घटोपलम्भ के यावत्कारण से विशिष्ट प्रालोकनियत घट की सत्ता में घटोपलम्भ की व्याप्ति का ग्राहक निरुपाधिसहचार से अतिरिक्त कोई तर्क नहीं है। क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि 'आलोकातिरिक्तघटोपलम्भकसमस्त कारणों से विशिष्ट उस घट की सत्ता होने पर भी घटोपलम्भ न होने पर घटोपलम्भ के आलोकान्य कारणों से घटोपलम्भ का अन्वय व्यभिचार होगा ।' क्योंकि श्रालोकातिरिक्त रामस्त कारणों के रहते हुए घटोपलम्भ के अभाव को आलोकरूप कारण के अभाव से प्रयुक्त माना जा सकता है । अतः प्रालोकातिरिक्त घटोपलम्भ के समस्त कारणों से विशिष्ट आलोक नियत घट की सत्ता से यदि घटोपलम्भ का व्यभिचार होगा तो तथाविधघट को सत्ता में घटोपलम्भ का जो निरुपाधि सहचार यानी आलोक नियतघट और आलोकातिरिक्त उसके उपलम्भक के कारणों से अतिरिक्त पदार्थ के सविधान से निरपेक्षसहचार उसका भंग होगा। क्योंकि तथाविधघट की सत्ता होने पर यदि घटोपलम्भ नहीं होगा तो यही मानना होगा कि ताश प्रतियोगीता में घटोपलम्भ सहचार ( व्याप्ति) के लिये किसी अन्य का भी सहचार अपेक्षित है तो इस प्रकार प्रालोकनियत और उसके उपलम्भ के अन्य कारणों से अतिरिक्त पदार्थ के सहचाररूप उपाधि से निरपेक्ष घटोपलम्भसहचार का भङ्ग होगा । अतः अन्धकार व्याप्त देश