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[शास्त्रवार्ता स्त०५ श्लोक
या विरहप्रतियोगिकोटी निवेश्य इति वाच्यम्, तथापि भृतले घटानुपलम्भम्य घटालोक संयोगाभावप्रयुक्तत्वेन नन्मात्रप्रयुक्त्या भावात् ।
[ अधिकरणघटित योग्यता की व्याख्या त्रुटिपूर्ण ] ___निम्नोक्त रीति से विचार करने पर कतिपय विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किया गया योग्यता का यह उक्त निर्वचन भी समीचीन प्रतीत नहीं होता । उक्त योग्यता का स्वीकार करने पर प्रभाव के धारावाहीप्रत्यक्ष की उपपत्ति न होगी। क्योंकि उस स्थल में पूर्वपूर्वक्षण में होने वाला प्रभाव प्रत्यक्ष बाधनिश्चयविधया उत्तरोतरक्षण में प्रतियोगी के अनुपलम्भ का प्रयोजक होगा। अतः उत्तरोत्तरक्षरण में भूतलादिविशेष्यक घटादिविशेषणक अनुपलम्भ में पूर्व पूर्व क्षणोत्पन्न बाधनिश्चयप्रयुक्तत्व' भी रहने से प्रतियोगीतत्संनिकर्षविरहमात्रप्रयुक्तत्व न होने के कारण उत्तरोत्तर क्षण में भूतलादि में घटादि का प्रभाव प्रत्यक्षयोग्य नहीं होता।
___ अभाव के धारावाहिक प्रत्यक्ष की उपपत्ति के लिये यदि यह कहा जाय कि--"यदधिकरणविशेष्यक-निमितावच्छेदककलौकिकोपलम्भविषयत्वाभाव यद्धर्मविशिष्ट में प्रतियोगितसंनिकर्षविरहमात्रप्रयुक्त हो तदधिकरण में तद्धर्मावच्छिन्नाभाव योग्य होता है"-तो ऐसा कहने पर यद्यपि अभाव के धारावाहिक प्रत्यक्ष की उपपत्ति सो हो जायगी, क्योंकि धारावाहिक प्रत्यक्षस्थल में जो "भूतलं' 'घटाभावः' इस प्रकार का बाघ निश्चय होता है वह भूतलं घटवत्' इसी बुद्धि का विरोधी हो सकता है, किन्तु 'घटवत्' इस निर्मितावच्छेदककबुद्धि यानी धर्मितावच्छेदकानवशाही बुद्धि का विरोधी नहीं हो सकता। अत एव उत्तरोत्तर क्षण में घटादि में जो इस उपलम्भविषयत्व का प्रभाव होता है वह बाधप्रयुक्त नहीं अपितु प्रतियोगीसनिकर्षविरहमात्र प्रयुक्त होता है। उक्त प्रापत्ति का परिहार करने के लिये दूसरा उपाय यह भी है कि योग्यता के लक्षण में प्रविष्ट विरह के प्रतियोगी कोटि में बाधाभाव का भी प्रवेश करके योग्यता का निर्वचन इस प्रकार किया जाय कि "यद्धर्मविशिष्ट में यदधिकरराविशेष्यक लौक्रिकोपलम्भविषयत्वाभाव प्रतियोगी उसका संनिकर्ष तथा बाधाभाव इन तीनों के विरहमात्र से प्रयुक्त हो, तद्धर्मावच्छिन्न का अभाव तदधिकरण में योग्य होता है। तथापि घटालोकसंयोगाभाव को लेकर प्रापत्ति आयेगी षयोंकि भूतल में घट का अनुपलम्भ घटालोकसंयोग के अभाव से भी प्रयुक्त होता है, अतः प्रतियोगी, तत्संनिकर्ष, बाधाभाव तीनों के विरहमात्र से प्रयुक्तत्व न होने से भूतल में घटाभाव को योग्यता न हो सकेगी।
___ न च तत्तत्सनिकर्षातिरिक्तप्रतियोग्युपलम्मकतायच्छेदकावच्छिन्नविरहप्रयुक्त इति मात्रान्तार्थः, भूतले आलोकसंयोगसत्त्वाद् न तद्विरहः, द्रव्यचाक्षुषे आलोकसंयोगत्वेनैव हेतुत्वात् , अतिप्रसङ्गस्य विषनिष्ठसामानाधिकरण्येनव वास्तित्वात् , अत एव घटाकाशसंयोगाधनध्यक्षत्वस्य घटाकाशसंयोगादीनां गुरुत्वादिवदयोग्यत्वेन प्रयुक्तत्वेऽपि न क्षतिः, गुरुत्वादिभेदस्य सामान्यत एव प्रत्यक्षहेतुत्वादिति वाच्यम्, संनिकस्यापि त्यागापत्तेः, यद्विरह्मात्रप्रयुक्तत्वोपादानेऽपि दोपाभावाचक्षःसंयोगत्वेनैव चाक्षुषहेतुत्वाव , घटाभावभ्रमानुपपत्तेच, तत्र घटानुपलम्भस्य दोपप्रयुक्तत्वात् । न च तत्तद्दोपाभावोऽपि ततुल्यतया निवेश्यः, हृदादौ वहयादि