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स्या० क० टोका एवं हिन्दी विवेचन ]
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[ क्षणिकत्व बोध के लिये अनुमान असमर्थ ] ज्ञान स्वानुमान से अर्थात् स्वर्मिक अथवा स्वहेतुक अनुमान से भी क्षणिकत्व का ग्राहक नहीं होता। तात्पर्य, इस प्रकार का अनुमान नहीं हो सकता कि-'ज्ञानग्रह्मभाव अनित्य है क्षणिक है, क्योंकि ज्ञानग्राद्य है. जैसे ज्ञान का स्वरूप क्योंकि ज्ञान चेतन है और ग्राह्यभाय अचेतन है: अतः उन दोनों में भेव स्वभाविक है। यद्यपि ज्ञानग्राह्यत्वरूप से दोनों में सारूप्य है, किन्तु इस प्रकार का सारूप्य नहीं है-जिस से ज्ञान और ग्राह्य-चेतन और अचेतन उभय-साधारण व्याप्तिबोध हो सके। दूसरा दोष यह है कि ज्ञान को क्षणिक अर्थ का अनुमापक मानने पर लिङ्गधर्म का उल्लंघन होगा। क्योंकि लिङ्ग का धर्म होता है साध्य का अविनाभाव अर्थात साध्य को व्याप्ति तथा पक्षधर्मता। और उन में (बौद्धमतानुसार) व्याप्ति का ज्ञान होता है तत्स्वभाव यानो तत्तादात्म्य से तथा तदुत्पत्ति से, इन दोनों से भिन्न साधन के द्वारा अविनाभावरूप लिङ्गधर्म ग्राह्य नहीं होता । ज्ञान न तो अर्थ का स्वभाव है अर्थात् ज्ञान में न तो अर्थ का तादात्म्य है-और न वह अर्थ का कार्य है, अर्थात न अर्थाधीनोत्पत्तिक है, क्योंकि ज्ञान और प्रर्थ को सहभावी मानने पर उन में पौवापर्य न होने से कार्यकारणभाव नहीं हो सकता। और क्रमभात्री मानने पर ज्ञान में अर्थाधीनोत्पत्ति होने से ध्याप्ति. रूप लिङ्गधर्म की हानि न होने पर भी पक्षधर्मतारूप लिङ्गधर्म की हानी होगी क्योंकि क्षरिणकत्व पक्ष में ज्ञान काल में अर्थ का नाश हो जाने से दोनों में सम्बन्ध दुर्घट है। इस प्रकार ज्ञान में लिङ्गधर्म का अभाव होने से उससे क्षणिक अर्थ का अनुमान नहीं हो सकता।
न चार्थक्रियालक्षणसत्वेन क्षणिकत्वानुमानमपि युक्तम् , ततः क्षणापस्थितिमात्रसाधने सिद्धसाधनात , क्षणाण स्थितिनिवन्धनत्वाद् बहुक्षण स्थितेः, क्षणादृयमभावस्य च तेन सह प्रतिबन्धाहेण साधयितुमशक्यत्वादिति भावः॥४८॥
यदि यह कहा जाय-अर्थनियारूप सत्व से क्षणिकत्व का अनुमान होगा-तो यह भी थुक्तिसंगत नहीं है क्योंकि क्षणस्थायित्वरूप क्षणिकत्व का साधन करने में सिद्धसाधन होगा क्योंकि बहक्षणसम्बधरूप स्थायित्वपक्ष में भी अर्थ में क्षणिकत्व मान्य होता है. क्योंकि बरक्षणसम्बन्ध अस्थितिमलक ही होता है। यदि क्षण के अनन्तर अर्थाभाव' अर्थाद अर्थ में स्वोत्पत्त्यनंतरक्षण में उत्पन्न ध्वस के प्रतियोगित्वरूप क्षणिकत्व का साधन किया जायगा तो वह शक्य नहीं है, क्योंकि अर्थक्रियारूप सत्त्व में इस प्रकार के क्षणिकरत्व का व्याप्तिग्रह नहीं है ।। ४ ।।
४६ बों कारिका में 'नित्यवस्तु में अर्थक्रियाकारित सम्भव न होने से परिशेष अनुमान से अर्थ में क्षणिकस्य की सिद्धि हो सकती है' इस शंका का परिहार किया गया है
अथ नित्यस्याब्रियाऽक्षमत्वात् पारिशेष्यात शणिकत्व सेत्स्थतीत्याशङ्कयाहमूलम्-नित्यस्यार्थक्रियायोगोऽप्येवं यक्या न गम्यते ।
सर्वमेवाविशेषेण विज्ञानं क्षणिकं यतः॥४९॥ एवं सति नित्यस्यार्थक्रियाऽयोगोऽपि न गम्यते युक्त्या, नित्यस्यैवाज्ञानात् । अत्र हेतुमाह-यतः सर्वमेव विज्ञानमविशेषेण क्षणिकम् । एवं च बहुक्षणस्थायित्वरूपं नित्यत्वं कथं बहुक्षणग्रहम् सुग्रहम् ? इति भावः ॥ ४६ ॥