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स्या० क० टीका एवं हिन्दी विवेचन ]
अभ्युपगम्याप्यर्थग्रहं दोषान्तरमाह
मूलम् - ग्रहणेऽपि यदा ज्ञानमपत्युत्पत्स्यनन्तरम् । तदा तत्तस्य जानाति क्षणिकत्वं कथं ननु ? ॥४६॥ ग्रहणेऽप्यर्थस्य यदा ज्ञानमुदेति तदा तद् ब्रह्यम् उत्पत्त्यनन्तरं - उत्पत्तिनाशकाले, अपैति नश्यति । अतस्तस्य क्षणिकत्वं कथं नतु १ - नैव जानाति, अवस्तुत्वात् तस्य ज्ञान - स्य च वस्तुग्राहकत्वात् ॥ ४६ ॥
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[ नष्ट अर्थ के क्षणिकत्व का ग्रहण कैसे ? ]
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यदि इसी प्रकार अर्थ के ज्ञान का अभ्युपगम कर भी लिया जाय तो भी यह तो निश्चित ही है कि जिसकाल में ज्ञान का उदय होता है वह अर्थोत्पत्ति का नाशकाल होता है अतः उस समय अर्थ नष्ट हो गया रहता है । इस प्रकार अर्थोत्पत्ति के अव्यवहितोत्तरक्षण में होनेवाला श्रर्थनाश हो अर्थ का क्षणिकत्व है । अतः बौद्धमत में वह उमरगोत्न ज्ञान अर्जन श्रमिक होने से उसे कैसे जान सकता है ? क्योंकि ज्ञान तो वस्तु का ग्राहक होता है प्रवस्तु का नहीं, और यहाँ क्षणिकत्व यानी पूर्वक्षणवृत्ति अर्थ का नाश तो अवस्तु है । इसलिये ज्ञान उसका ग्राहक नहीं हो सकता, क्योंकि ज्ञान प्रमाणभूतज्ञान वस्तु का हो ग्राहक होता है ।। ४६ ।।
४७ वीं कारिका में बौद्ध के इस आशय का कि- 'वस्तुग्राही दर्शन क्षणिकस्व का भी ग्रहण कर सकता है क्योंकि वह स्वरूपतः निर्विकल्पक स्वभाव होता है अतः वह क्षणिकत्व का विशेषण रूप से ग्रहण नहीं करता' उल्लेख कर के निराकरण किया गया है ।
जानात्येव वस्तुदर्शनं क्षणिकत्वमपि स्वरूपतोऽविकल्पस्वभावत्वात् विकल्पयति तु न, इति पराशयमाह
मूलम् — तस्यैव तत्स्वभावत्वात्स्वात्मनैव तदुद्भवात् ।
यथा नोलादि ताद्रूष्यान्नैतन्मिथ्यास्वसंशयात् ||४७||
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"तस्यैव-अर्थस्य तत्स्वभावत्वात् क्षणिकत्वस्वभावत्वात्, स्वात्मनैव - ज्ञानात्मनैव, जानाति क्षणिकत्वम् । कुतः ? तद्भवात् क्षणिकस्वभावादर्थादुत्पतेः । निदर्शनमाह--यथा नीलादि जानाति ताद्रूयात् विषयसारूप्यात् न तु विकल्पविवया, तथेदमपीति भावः । " अत्रोत्रम्--नैतद्-यदुक्तं परेण, तन्नीत्यैव मिथ्यात्वसंशयात्, क्षणिकत्वबोधे सांख्यानामालोचने शुक्ले पीतदर्शनादुत्तरकाले तत्र पीताऽनिश्चयात् । 'प्राकू पीतानालोचनमनुमीयते ' चेत् ? क्षणिकत्वदर्शनेऽपि तुल्ययोगक्षेममेतदिति ॥ ४७ ॥
[ क्षणिकत्व वोध में मिध्यात्वसंशय आपत्ति |
"अर्थ क्षणिकत्व स्वभाव होता है और उस क्षणिकत्वस्वभाव अर्थ से उत्पन्न होने के कारण ज्ञान भी अर्थ के क्षणिकत्वस्वभाव को उसके अन्य आकार के समान प्राप्त करता है । अत एव