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स्या० फ० टीका एवं हिन्दी विवेचन !
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अययन के पीसरूप का और घट के चित्ररूप का नाश होता है वहां नष्टपीतरूप वाले प्रश्यव में पाक द्वारा व्याप्यसि नीलरूप की उत्पत्तिकाल में घट में चित्ररूप की उत्पत्ति का प्रसङ्ग होगा, क्योंकि उसके पूर्व घर में नीलादिअभावषटक स्वाश्रय समवेतत्व सम्बन्ध से विद्यमान है। किन्तु नीलेतररूपादि को चित्ररूप के प्रति कारण मानने में यह आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि उक्त स्थल में नीलेतररूप स्वाश्रयसमवेतत्त्व सम्बन्ध से घर में विद्यमान नहीं है।
[कार्यसहभावेन अभावपटक कारणता की आशंका ] यदि यह कहा जाय कि नोलामादि में चित्ररूप के प्रति कार्यसहमाव से कारणता होतो है अतः कार्यकाल में नीलादिप्रभाव के रहने पर ही कार्य को उत्पत्ति हो सकती है। उक्त स्थल में नष्टपोतरूप वाले कपाल में व्याप्यवृत्तिनीलरूपोत्पत्तिकाल में नीलस्पाभाव नहीं है, अतः उस काल में चित्रोत्पत्ति का प्रसङ्ग रूप दोष सम्भव नहीं है तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि जहाँ नील-पीत और श्वेत इन तीन रूपवाले कपालों से कोई घट उत्पन्न होता है और उस में पाक से पीतरूप और श्वेत. रूप का नाश क्रम से होता है वहाँ उस घट में श्वेतरूप नाश काल में चित्ररूपोत्पत्ति का प्रसङ्ग होगा, क्योंकि उस काल में पोतश्वेतादिरूपों का अभाव स्वाश्रयसमयेतत्व सम्बन्ध से विद्यमान है।
यदि इस दोष के निवारणार्थ नीलाभावावि को नील और नीलजनकतेजःसंयोगान्यतरत्वापच्छिन्न अभावत्वरूप से कारण माना जाय तो उक्त आपत्ति का धारण तो यद्यपि हो सकता है क्योंकि उक्त घट में पाक से पोतरूप नाश के अनन्तर श्वेतरूप नाशकाल में नीलजनकतेजःसंयोग होने से नील. नोल जनकतेजःसंयोगान्यतराभाव नहीं है । तथापि ऐसा मानने में, नौलेतररूपस्वादिरूप से कारणता मानने की अपेक्षा गौरव है और संयोग प्रव्याप्यत्ति होने से नील नोलजनकतेजःसंयोगान्यतराभाव के रह जाने से उक्त आपत्ति का परिहार नहीं हो सकेगा । यदि अभाव में प्रतियोगिव्याधिकरणता का निवेश करेंगे तो और अधिक गौरव होगा।
निरवच्छिन्नविशेषणताघटितस्त्राश्रयसमवेतन संबन्ध से कारणता की शंका ]
इन सब वोषों के निवारणार्थ (५) यदि यह कहा जाय कि-"प्रतियोगितावच्छेदक से अविशेषित उक्त प्रभाय को निरवरिछम्न विशेषणता से घटित स्वाश्रय समवेतत्व सम्बन्ध से कारण मानने में उक्त दोष नहीं है क्योंकि नीलजनकतेजःसंयोगकाल में नील-नीलजनकतेज संयोगान्यतराभाष निरवच्छिन्नविशेषणतासम्बन्ध से (स्वाश्रय) अबरच में न रहने के कारण उक्त सम्बन्ध से स्वाश्रय समवेतत्व सम्बन्ध से उक्त अभाव घट में नहीं रहेगा, अत एव उस में चित्ररूपोत्पत्ति का प्रसङ्गन हो सकेगा और प्रतियोगितावच्छेदक अभाव में विशेषण न रहने से गौरव भी नहीं होगा। क्योंकि तत्तदभाव तत्तव्यक्तित्वरूप से कारण होगा।"-तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि प्रतियोगिकोटि में उदासीन के प्रवेशाऽप्रवेश में कोई विनिगमक न होने से नील-वायुसंवामान्यतराभाव को भी प्रतियोगितावच्छेदकाऽविशेषितरूप से निरवच्छिन्नविशेषणताघटित स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्ध से कारणता की आपत्ति होगी। अतः नीलाभावादि षटक को कारण मानना युक्तिसंगत नहीं है किन्तु नीलेतर पोतेतर रूपादि को ही चित्ररूप के प्रति कारण मानना उचित है।
अनेकरूपबादी:-चित्ररूपवादी के इस विस्तृत कथन पर यहाँ विचार करने पर यह कार्यकारणभाष भी उचित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि नीलघट के विभिन्न अवयवों में भिन्न प्रकार के लेप द्रव्य का प्रयोग कर जब घट पकाया जाता है तब पाक से अवयव और अवयवी के रूप का नाश