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| शास्त्रवासा. स्त० ६ श्लो० २५
अर्थक्रियासमर्थनं क्षणिके निरन्धयनश्चरे घस्तुनि यच गीयते परैः, तदुत्पत्त्यनन्तरं नाशादयुक्तिमद् विज्ञेयम् ॥ २४ ॥
[ अर्थक्रियासमर्थत्व हेतु युक्तिसंगत नहीं है ] निरन्यय नश्वर बस्तु में बौद्धों ने जो अर्थक्रिया सामर्थ्य का अभ्युपगम किया है वह अयुक्त है क्योंकि-'निरन्वयनश्वर वस्तु अपनी उत्पत्ति के अनन्तर ही नष्ट हो जाती है ॥ २४ ॥
२५ वो कारिका में उत्पत्ति के अनन्तर नष्ट होने वाली वस्तु अक्रियासमर्थ क्यों नहीं हो सकती इस का प्रतिपादन किया गया है
कथम्' ? इत्याहमूलम् अर्थक्रिया यतोऽसौ वा तदन्यो वा द्वयी गतिः ।
तत्वे न तत्र सामर्थ्यमन्यतस्तत्समुद्भवात् ॥२१॥ अर्थक्रिया यतोऽसौ चा=जनकरयाभिमतः पदार्थ एव चा स्यात् , तदन्यो वा तदनन्तरभावी पदार्थ एव वा यो गति द्वाविमावत्र प्रकारौ। आधे दूरणमाह-तच्चे अर्थक्रियायास्तदात्मकरखे न तत्र-अर्थक्रियायाम् सामथ्र्य, 'तस्य' इति योगः । कुतः ? इत्याहअन्यतः स्वहेतोः तत्समुद्भवात् तस्याखिलस्वधर्मान्वितस्योत्पादात् । स्वस्य जनकत्वं च दृप्टे-याभ्यां विरुद्धम् । तस्माद् नार्थक्रियायास्तदभेदे तस्याक्रियाया उत्पादे सामथ्र्यम् ॥ २५॥
[अर्थक्रिया स्वजनकस्वरूप नहीं है ] अर्थक्रिया के दो प्रकार सम्भावित हैं-एक यह कि अर्थक्रिया जिससे उत्पन्न होतो है-तत्स्वरूप होती है। अर्थात जो पदार्थ अर्थक्रिया का जनक माना जाता है वह पदार्थ हो अर्थक्रिया है । अथवा दूसरा यह कि अर्थक्रिया जिससे होती है उसके अनन्तर होने वाले पदार्थस्वरूप होती है, अर्थात जो पदार्थ अर्थक्रिया का जनक माना जाता है उस पदाथ के अनन्त
पदार्थ के अनन्तर होने वाला पदार्थ हो अर्थक्रिया है। इनमें प्रथम प्रकार में यह दोष है कि अर्थक्रिया स्वजनकस्वरूप होगो तो अर्थक्रिया में जनक का सामथ्र्य नहीं होगा। क्योंकि वह अपने हेतु से अपने समस्त धर्मों से अन्वित ही उत्पन्न होता है। अतः जब वह अर्थनियात्मक होगा तो अर्थक्रियारूप से भी अपने हेतु से ही उत्पन्न होगा अस: अर्थक्रिया में उसका सामर्थ्य न होकर उसके हेतु का ही सामर्थ्य सिद्ध होगा। दूसरी बाल यह है कि स्व में स्व का जनकत्व दृष्ट और इष्ट से विरुद्ध है । अर्थात स्व में स्व की जरकता कहीं दृष्ट नहीं है और वह आत्माश्रय के कारण इष्ट भी नहीं हो सकती। अतः अर्थक्रिया को जनक से अभिन्न मानने पर प्रक्रिया की उत्पत्ति में जनक का सामर्थ्य नहीं हो सकता।
२६ वीं कारिका में यह बात बतायी गयी है कि अर्थ किया और उसके जनक में अभेव मानने पर अर्थक्रियाजनकत्वरूप से अभिमत पदार्थ अर्थक्रिया के धारण और नाश में भी समर्थ नहीं हो समता