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* चतुर्थ स्तबक विषयमाला *
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विषय:
व्याख्याकार का मंगलाचरण
भूमि समवसरण की महीमा सौत्रान्तिक- योगाचार बौद्धमत वार्त्ता भाव की क्षणिकता में हेतु चतुष्क माश हेतु अयोग- प्रथम हेतु अर्थक्रियासमर्थत्व-द्वितोय हेतु परिणाम तीसरा हेतु अन्ततः क्षयदर्शन- चौथा हेतु ज्ञानमात्रास्तित्ववादी योगाचार मत बाह्यार्थ के अबाधितानुभव से बौद्ध मत की अयुक्तता - उत्तर पक्ष ज्ञान भिन्न वस्तु असत् नहीं है पूर्वानुभूत का स्मरण क्षणिकता में बाधक 'सोऽयं' प्रत्यभिज्ञा क्षणिकता में बाधक 'सोय' प्रत्यभिज्ञा के प्रामाण्य की उपपत्ति प्रत्यभिज्ञा प्रामाण्य में विरोध की आशंका अनेक दि० संबंध में विरोध की प्रत्यापत्ति १४ क्षणिकत्वानुमान से प्रत्यभिज्ञा का बाध नहीं १४ प्रत्याभिज्ञा की भ्रान्तता का निराकरण उद्वेग प्रवृत्ति प्राप्ति की क्षणिकवाद में अनुपपत्ति १६ क्षणिकत्व पक्ष में प्रवृत्ति का उच्छेद क्षण भंग पक्ष में भोग की अनुपपत्ति हेतुहेतुमद्भाव के सन्तान सामग्री पक्षद्वय सन्तान पक्ष में हेतुहेतुमद्भाव की उपपत्ति क्षणिकवाद में पारलौकिक फल की उपपत्ति १८ संतान पूर्वापरभावापन क्षणों से भिन्न नहीं समृति - प्रत्यभिज्ञा की नये ढंग से उपपत्ति भाव और अभाव का अन्योन्य परिवर्तन संभव नहीं है २०
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विषय
'भावो नाभावमेतीह' इसकी विस्तार से उपपत्ति का आरंभ
भावनाया की क्षणिकता में बौद्धों का तर्क अविद्धकर्ण उद्योतकर मत की समीक्षा क्षणस्थितिधर्मकत्व की क्षणिकता व्यावहारिकनिवृत्ति रूप अस्थिति की कल्पना निरर्थक
सत्त्व का न होना यही असत्त्व भाव का अभाव तुच्छ नहीं है असत्व कदाचित्क होने से उत्पत्तिशील तुच्छ की निवृत्ति हेतु से उत्पत्तिविरह
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स्वतः तुच्छ की निवृत्ति निष्प्रयोजन- बौद्ध असत् सत् नहीं होता तो सत् भी असत्
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की शंका २८
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नहीं होता स्वभाव हेतुता में तुल्यता की आपत्ति तुच्छ का कोई स्वभाव नहीं होता बौद्ध भाव और असत्त्व में हेतु-फल भाव भाव का अभाव में परिवर्तन शक्य ! असत्व में सद्भवन स्वभावता और ज्ञेयत्व की सिद्धि सत्त्वनिवृत्ति को प्रत्यक्षमिद्धि नहीं है समारोप के कारण सत्त्वनिवृत्तिग्रह न होना अयुक्त है ३३ निर्विकल्प से त्रैलोक्यग्रह की प्रसक्ति स्वलक्षण में निर्धर्मकत्व का मतिप्रसङ्ग पटुता और अपटुता का निरश में असंभव ३७ तुच्छता के अग्रह से क्षणिकत्वनिश्चय का
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प्रसव का दर्शन नहीं होता
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असंभव ३८ ३६