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[शा वा० समुरुचय स्त० ४ श्लो० ११४
प्रदीर्घाध्यवसायेन नश्वरादिविनिश्चयः ।
अस्प च भ्रान्ततायां यत्तत्तथेति न युक्तिमत् ॥११४॥ प्रदोर्याध्यवसायेन- अन्वयिव्याप्त्यादिपर्यालोचनप्रयाहरूपतयाऽनुभूयमानेन लिङ्गादिविकल्पेन नश्वरादिविनिश्चयः भावग्रधाननिर्देशाद् नश्वरत्वादिपरिच्छेदः अभ्युपेयः । अस्य च-प्रकप्रदीर्घाध्यवसायस्य भ्रान्ततायामुच्यमानायाम् यत् यस्मात् तत्-अधिकृतं वस्तु तथा नश्वरम् इति एतत् न युक्तिमत्-न संभवदुक्तिकम् ॥११४॥
तस्मादव श्यमेष्टध्या विकल्पस्यापि कस्पचित् ।
येन तेन प्रकारेण सर्वथाऽभ्रान्तरूपता ॥११५॥ सम्माद् विकल्पस्यापि कस्यचित् नश्वरत्वादिग्राहिणः येन तेन स्वपरिभाषानुमारिणा प्रकारेण सर्वथा-पर्वविषयावच्छेदेन अभ्रान्सरूपता-परमार्थविषयता अवश्यमेटच्या अकामेनाप्यङ्गीकर्तव्या तथा च स्वसाक्षिका स्थायिता सिद्धवेत्यभिप्रायः ॥११५॥ इदमेवाह
सन्पामस्यां स्थितोऽस्माकमुक्तबन्याययोगतः।
पोधान्वयाऽदलोत्पत्यभावाच्चातिप्रसङ्गतः ।११६॥ सत्यामस्यांकम्यचिद् विकल्पस्याभ्रान्ततायाम् स्थितः सिद्धः, अस्माकमुक्तवत= प्रागुक्तीत्या, न्याययोगतः युक्तन्यायात् बोधान्वयाज्ञानाऽविच्छेदः स्वद्रव्यात्मना ।
[ रिणकत्व का ग्रानुमानिक निश्चय भ्रान्त होने को आपत्ति ]
११४ वीं कारिका में पूर्वचचित विचारों का निष्कर्ष इस प्रकार प्रकट किया गया है कि भावमात्र में नश्वरत्व का निश्चय एक प्रदोघं प्रध्यवसाय यानी व्याप्ति-पक्षधर्मता प्रादि के ज्ञान के अन्धयो, प्रवाह रूप में अनुभूय मान लिङ्ग प्रादि के अध्यवसाय-विकल्प ज्ञान से होता है। यदि इस प्रध्यप्रसाय को भ्रम माना जायगा तो इससे प्रादुनूंत होने वाला मा मात्र में नश्वरता का प्रानुमानिक निश्चय भो भ्रम हो जायगा । प्रतः भावमाघ नश्वर--क्षणिक होता है यह मत युक्तिसंगत नहीं हो सकता ॥११४॥
११५ वीं कारिका में विकल्प की प्रमारूपता अवश्य मानने योग्य है यह बनाया है
यतः बौद्ध को भावमात्र का नश्वरत्व सिद्धान्तरूप में स्वीकार्य है अत: भावमात्र में नश्वरत्वपाही विकल्प को भी अपनी परिभाषा के अनुसार किसी न किसी प्रकार से सम्पूर्णाश में प्रभान्सरूप यानी परमार्य विषयक मानना होगा। यह तमो सम्भव है जब भावमात्र में नश्वरस्व की सिद्धि के मूलभून इष्टान्त में नश्वरत्वादि विकल्प को व्याप्ति पक्षधमंता ज्ञाम के प्रवाह में अन्वयी माना जाय। इस प्रकार उत्तरोत्तर भावी विभिन्न शानों में बोध का अन्वय स्वानुभवसिद्ध होता है ॥११॥
१:६ वीं कारिका में इसो विषय का प्रकारान्तर से प्रतिपादन किया गया है