SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ +1 विषयानुक्रमः पृष्ठांक विपयं पृष्ठांक विषय १४ पेरके प्रमारमकमान से पता ईसपर की ४२ व्यापकरूप से कारणता सिद्धि का पूर्वपक्ष सिद्धि, पेष किसी भसंसारिपुरुषजन्य है। ॥ ॥ उत्तरपक्ष २५ पास्यपक्षक अनुमान ४४ सामान्य कार्यकारणभाष कल्पना में गौरष " इचणुक परिमाणोत्पादक सरन्याजनक अपमा- ॥ अन्यत्व या भवकिल नरय का व्ययं निवेश पुद्धि में ईश्वर मिथि , सामावामाष त्रिभोषामायकूट से मनग्य २६ तयणक परिमाण के संख्याजभ्यस्य पर शंका ४५ खणाघट में ईश्वरकर ख-दीधितिकार २७ कार्यायोजन' कारिफा की अन्यथा योजना 1. सण्डघन यानी पूर्णतापीयन यूत्ति जनमत की ययार्थव्याख्या ईश्वर प्रयुक्त है। ४६ पाकक्रिया से मन्यघट सत्पत्तिप्रक्रिया की २८ वेविषयक विशिष्टनामरूप धृति से मनुमान भालोचना "वामानुष्ठान से अनुमान ५ शेषिकमतानुमारी पाकक्रिया की मानोचन। -हम-ईश्वर आदि पद से अनुमान । ४८ ईश्वर में लौकिक प्रत्यक्षमान का अमाव २६ 'यजेन' इत्यादि में विभ्यर्थ प्रत्यय से , ४. सर्वया या सर्पज्ञाता रूप में मी ईश्वरसिद्धि ५ विध्य इश्वमाषमता या प्राप्ताभिप्राय की वाक्यता ३१ इष्टसम्बनतापक्ष में समस्या ५० द्वषणुकाविप्रत्यक्ष निरामय भी हो सकता सात सत्य से विधिकास्य का अनुमान ५१ ईयर में जम्यानको आपत्ति ३२ सिमस्यर के नियम " : INR में भेद नहीं है निरोध की अनुपपति ४२ प्रवृत्ति से ईश्वर में दूध का मतिप्रसंग ३५ वेवगन इमर निरुपण से ईश्वरसिद्धि ५३ कंटकाविधिनाश मौरव का सम्बन्ध ३४ प्रशंसापरक और निंदापरक देशपायों से , ईश्वर की इच्छा से देश-काम नियम की ईश्वर मिद्धि पपत्ति करने का प्रयास । , पुसमपुरुषीय मण्यात प्रत्यय से ईश्वरसिद्धि ५४ पामलोगों के अभिप्राय का संक्रमण ३५ ईश्वर कगरकतत्वप्रतिकार-सत्तरपक्ष ५५ चिनीयाको कारणताबमछेदकना में गौरव पोतराम ईश्वर का नहीं हो सकता | , कारणता श्वगनुमति अधीन नहीं है ,, नरकादिफसककल्प में ईश्वर प्रेरणा ५६ भषस्थ केषजी केबान से नियमन समक्ष | তা ঋষি ५७ ईषर साधक शेषानुमानों की दुर्बलता ३६ बुद्धि का वपक्ष में ईश्वत्व निरक। श्क क्षित्यादि पक्षक पंचम अनुमान में बाधोप १७ में ही ईश्वराधीनता का प्रतिकार. , ईश्वर के जिस्य पारीर में पटापनि भाक्य २८ गोवराग शिक्षा को विश्वरचना क्या ५६ मष्ट पाचपरमाणुक्रिया की पति प्रयोजन । ६. मरष्ट के बिलम्ब से कार्यघिसम्म शमय है ३॥ नियोजन पेशा से पोवरागता की हानि |, 'परमाणुक्रिया' भनुमान में पेष्टाल पारि ४० सांपयमय में जानादि का आश्रय ईश्वर ६१ घृतिहितक मनुमान में भने कातित्व ४कार्यसामान्य प्रति उपापामप्ररयक्षकारमा ६२ प्रतिबन्धकामावरसामपीकालीनस्य का की मालोचना । व्यर्थ निषेरा कृषि और कार्य का भी सामान्यतः कार्य | ६५ निरासम्म पृथ्वी का माघार धर्मी। कारणमाष नहीं है , सिरक खमस मै पाणपवनामाप्रसंग
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy