________________
पृष्ठांक
द्वितीय- तृतीयस्तवक विषयानुक्रम
स्वपक- २
12
विषय
कारमंगल
3। पुण्यपाप के नियम में आपका पुण्यपाप का नियामक प्रामाण्य ५ संवाद से परोक्षवस्तु में मी आगम
का प्रामाण्य
४ भागमेक्यादि से प्रामाण्य का समर्थन ५. आयमेकल्प का निश्वयक पापक्षय ६ परीक्षा परीक्षा उभय के अयोग से संद्ध शब्दमा मन्त्र नहीं है-पूर्वपक्ष अनुमान से राम मरण व्यर्थ नहीं है-उत्तरपक्ष ८ योग्यता आत घटित हेतु की मशक्ति "ताहरू आकांक्षा का तु में प्रवेश व्यर्थ अनुमान से शब्दनितो की मनुरपति अनुमतिपक्ष में शाकतबोधानुमय की आपत्ति पृथक् अनुमिति की दुर्घटना
०
११ शाब्दम' मनुष्यवसाय से स्वतन्त्र शुरुव प्रमाण की मिद्धि
भयपक्ष में गौरव तुल्य
" "हिंसादि से पाप और पहिंसादि से पुण्य - नियम की सिद्धि
१२ मन्त्र मोक्ष का कारण जीवस्थमाथ १३ स्वभाव और आगम अमि वारण्य १४ सप्रतिपक्ष स्वभाव-मसर कैसे ? २५ प्रमाणवाचित स्पमा कल्पना के अयोग्य १६ मग्न है- पूर्वप
अface में हिम का एटा
33
१७ अग्निशीष पक्ष में अतिप्रसंग उत्तरपक्ष
एम श्वमाष के अन्योन्य संक्रम आपति
18
कार्यं साधारण कारण आपसि का मिवारण १६ कार
कार्यसापेक्ष होती है
२० 'शुभकर्म से ही सुख' इसमें क्या प्रमाण ?
क
विषय
० पप से सुख होने पर सुबहुलता की आपति
२५ लोक मेंदुला होने मे पुण्य मे सुख की सिद्धि
२२ आगम ही शुभ में सुधारनाबोधक मतीन्द्रिय पदार्थ बोध आगमविदुः
11
२४ दुष्ट के बाय से प्रसंग साधन की
1.
शक्यता
दुख के वाक्य का भगम ममाग में अन्तभाव
अशुमानुष्ठान से सुखमा वस्तुतः जन्माल रीय कर्म का फल
दलाम का कारण नहीं है
२६ २७ जैतर शास्त्र प्रामाणिक क्यों है ? दृष्ट २६ अागमन से
DC
11
"P
J1
में प्रत्यभवाध
अगम निर्बल क्यों है ?
३० तु के अम्मा से मुक्ति का बाध
३१ अगम्यागमनादि से मध्यस्थमा प्राप्ति द्वारा मोक्ष- पूर्वपच ३२ अगम्यागमनादि से मध्यय की अनुपपतिउत्तरपक्ष
३३ पान से माध्ययम किम ३४ बासना का स्वरूप ओर भेष
३५ मध्य उदय के पूर्व गम्यागम्य में तुल्य
३६ छोकशास्त्र कथित
साधु हे १ प्रवृत्ति से इच्छा अभंग रहने से अप्रवृधिमाध्यस्य का अनुष भगम्यादि में महात्मा का भौवासीम्य प्रवृत्ति में विषयपरः सुखतर
असम्भव
८ मंसारमोचक्रमण के दूषय उपकार प्रयुक्त हिंसा का मनोविश्व