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[शा- वा० समुपय स्न ३-सो० ३३
तता को दोष ? इत्याह
मूलम्-बन्धादने म संसारो मुनिस्पिोपपद्यते ।
__ यमादि तदभाचे प सर्वमेव पार्थकम् ॥३३॥ पन्धाहत-अन्धं श्निा, देय-नारकादिरूपः संसारो न । नवाऽस्य-आत्मनः मुक्तिरूपपराते, पद्धानां कर्मणा क्षय एव हि मुक्तिरिति । तदभावे चयुक्त्यभावे च, सर्वमेव किनिधितम् , यमादि यमनियमादिकं योगानुष्ठानम् अपार्थकम् विपरीतप्रयोजनम् । कः खलु फलमनमिलषन्नेव दुष्करपलेशरात्मानमवसादयेत ? ॥३३॥ पयोंकि कमलमाल के रिशन तंतु का छिन्न नाल के साथ संघटन सर्वानुमब सिख है। बिना कारण संघटन कसे हो सकता है ? इसका को मो अवसर नहीं प्राक्षको मकता क्योंकि अष्ट महाशक्तिपाली कारण होता है। अत एवं जिस दिन भर का छिन्न अशी के साथ संघटनकारी अाए रहता है उत का अंगी के साथ संघटन होने में कोई माधा नहीं हो सकती। यदि पहा वांका की शाम कि देह मोर आत्मा में ऐक्य मानमे पर शरीर का दाह होने पर प्रात्मा का भी वाह हो जायगा-सो यह ठीक मही हैं क्योंकि मोर और नौर के समान अभिन्नता होने पर भी वेह और आत्मा में FD मिता भी होती है । उस भिन्नता के कारण ही शरीरवात होने पर भी आत्मवाह नहीं होना, जो मौर को पाप हो जाने पर उसके साथ हो ओर का विनाश नहीं हो जाता। इस विषय का विस्तृत विचार अन्यत्र स्टम्य है। ___निष्कर्ष यह है कि-आत्मा को देह से अत्यन्त भिन्न मानने पर हिसावि का अमाप हो जाया और हिंसाविका अभाव होने पर शुभाशुभ बग्ध का कोई निमित न होने से शुमाशुभ धन्ध भी न हो सकेगा। कारिका में आये शुभाशुम शम्ब का 'शुभ अशुभश्च ऐसो व्युत्पति मानकर द्वन्द ममास वा साधुपन नहीं हो सकता क्योंकि उक्त युति से अन्त मानने पर विचन विभक्ति को आपति होगी। कर्मधारय समास से भो साधुग्न नहीं माना जा सकता क्योंकि शुभ और अशुभ में ऐषय नहीं होता और नमधारय के लिए पूर्व और उत्तर पब के अर्थों में अमेव आवश्यक होता है. इसलिए 'शुभेन सहित अशुभ यह व्युत्पत्ति कर मध्यमवलोपीसमास से हो उसका साथुपन समनना चाहिए।
[बन्ध न होने पर मुक्त और संसारी के भेद की अनुपपत्ति ] ३वी कारिका में शुमाऽशुम अन्ध के प्रभाव में क्या घोष हो सकता है इस बात का प्रतिपाबन करतेए कहा गया है कि यदि पुमाशुभ बन्धन होगा तो मारमा संसारी न हो सकेगा, क्योंकि देव-नरफ, मत्युलोक प्रावि के साथ प्रात्मा का सम्बन्ध ही संसार कहलाता है मोर शुमागुम बन्ध ही उसका निमत माना जाता है। पत: उसके प्रभाव में मिमित का प्रभाव हो जाने से संसार का होना असंभव हो जायगा। शुभाशुभ बम्ब के प्रभाव में मात्मा का मोक्ष भी नहीं हो सकता क्योंकि कसवय अकोही मोक्ष कहा जाता है। जब प्रात्मा में कर्मबन्ध ही महीगा सो फिर उसका क्षय कसे संभव हो सकेगा? यदि 'प्रात्मा का मोक्ष महीं होता है। पहमान लिया जाय तो यम मियम प्राधिका साध्य पालन मिरर्थकोजायगायोंकिकोई भी मनुष्य बिना किसी फल को कामना फिये तुःसह मलेशों से अपने आपको पीडित करने का कष्टमय व्यापार नहीं करता ॥३३॥