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________________ * प्रकाशकीय निवेदन * " जैनाचार्य श्री प्रेमसूरीश्वराय नमः ।। पाठक यां समक्ष हिम्वी विवेचनालंकृतस्यावादकल्पलताटीका सहित यो शास्त्रवासिमुचय प्रश्परस्म का प्रथमस्तक प्रस्तुत हो जाने के बाव विरप्रतीक्षा के अनुसंधान में यह द्वितीय-तृतीयस्तबक' कप दूसरा बंश प्रकाशित करते हुये हम भसीम आनंद की अनुभूति करते। इम मत्यषिक मी हे स्यायनतरवल जनाचार्य श्रीमद विनय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज के जिन्होंने चिरमाल से परकी सी.बह म सलो मध्यपनक्षत्र में ले आने का परप श्रेय प्राप्त किया है, अन्यथा जम वर्शन और भारतीय शास्त्र के अभूल्य रत्ननियामतुल्य प्राय के प्रकाश से सामान्यजन अनमिझ ही रह जाते। स्यापवेवामत प्राचार्य पंसिराज श्री नवरीनाप शुक्ल महोदयने भी इस प्राचरन अन्तर्गत उच्चकोटि के मुक्ति संभं से अकृष्ट होकर मूलपायकार ओर म्यायाकार के सही तात्पर्य को उपासित करने के लिये बहविध अन्य प्रवृत्तियों में से अवकाश लेकर हिन्बी विवेचन के सर्जन में अधक पश्चिम उवाया है वह भी बहुत ही सराहनीय है। प्रथमस्तबक चौखम्बा मोरियन्टालिया [ पाराणसी] से दो वर्ष पूर्व प्रकाशित होने के बाद मुद्रणावि व्यवस्था संबम्भो कठिनाईयों को दूर करने के लिये शेषस्तकों के प्रकाशन का कार्यभार हमारी संस्था को प्राप्त हुआ है जिसे हम हमारा परम सौभाग्य समान कर निष्ठा से पूर्ण करने की उम्मोच रखते हैं-आशा है अन्य सबको का भो पमा शोन प्रकाधाम का श्रेय परमात्मा को कृपा से हमें प्राप्त हो। इस मंस के समन मुणमय में प० पू० भुमिराज भो हेमचन्द्रविजयजी म.को पुनीत प्रेरणा से जोषण अवनीशान मदिर-मातु गा और सोचिन्तामणि पाश्वनाथ मंदिर-अपामय-विलेपासे के बन इघेताम्मर मृतिपूजक तपागरुक संघ के मान वध्य का को धन्यवावाहं विनियोग हमर है एतवर्थ हम उन्न के प्रति सम है। प्रायका माण भिन्न भिन्न टाइप में मवेशीय पिंडवास नगर स्थित ज्ञानोवप प्रणालय में गुआ है और मुद्रण को सर्वाग सुन्दर बनाने के लिये मुगणालय के व्यवस्थापक एवं कार्यकरों ने परस्पर मिलकर निष्ठा से परिषम किया है पतवर्ष भी अवश्य धन्यवाद के पात्र है। पन्ध में कोई त्रुटि रहने म पाये इसलिये हिन्दी विवेचनकार भी पंक्तिमा और जियो विवेचन अभिवीक्षणकार पू. आचार्य बेखने पर्या परिषम किया है और मुद्रण में कोई त्रुटि म रह माय इसलिये पू. मुनिराम श्री जयसन्दरविजयजी म. ने भी पर्याप्त ध्यान रखा गया है फिर भी मुबमारि छमस्वसामूलक कोई टिष्टिगोचर हो तब उसका परिमार्जन करने के लिये अध्येता वर्ग को हमारी प्रार्थना है। मुमुक्षु और विज्ञासु मधिकारी सज्जन इस अम्पालका अध्ययन करके सनिश्चित वरमों के आधार से मुक्तिमार्ग को ओर प्रगति करे मही एक अन्तिम मंगल कामना। लि दिग्य दर्शन ट्रस्ट के ट्रस्टीगण का विनीत कुमारपाल पि. शाह .
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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