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[ शाम्याग्निमुफमय-न० २ इल्लोक: २
इदमेवाभिप्रेत्य व्युत्पत्निपुरस्कारेणैव ममाधानवामिाहमूलम-आगमाख्यासदन्ये तुमच प्यायपाधितम ।
__सर्याविषय नित्यं व्यक्तार्थ परमात्मना ॥२||
सवन्ये तुअदिदानास्तववादिनः, आगमारूया मानात् नियम बनने' इति पानयरोगः । अयमेनदन्त्र मानम् ? इत्यत आह नचागमास्य, दृष्टायाधितम= दृष्टेष्टाभ्यामविरुदम् । मनेन पयसा मिश्चति' इत्यादान बाधितनिरासः । तथापि बाऽत्रिपये प्रमनिपमे कथं जाना 5 मार-समाशिषः पारदभिलाग्यविषयम् , प्रज्ञापनीयभाषानामनन्तभागस्य श्रुनिबद्धत्येप सदस्पन्न भृनया मत्या निवद्धानामपि नेपां ग्रहणअषणा नानुपपन्न मेनन् । कृत्रिमत्यान् कथमीशमत १ इन्थन आइ.नि:प्रवाहापेक्षयाऽनादिनिधनम, भरसादौ चिक्छेदकालेपि महात्रि विन्द्रदान , नथाप्यमानानात्वादनाशमेत स्याह-परमात्मनाक्षीणदोषण भगवता ध्यतार्थ अनिपादितार्थम ।
अगर करें,-'यह पाता धर्म अथक अष्टमिक है । शा में मिजान कारण होता है. अतः जिस प्रमाण से धर्म प्रचामरूप धर्मी का माम होगा, उस प्रमाण से अविरत आ हो पाप होने और विरति प्रावि से ही पुण्य होने के नियम का भी नाम हो पाने से या वाखा नहीं हो सकती' -यह कहना होक महीं है, क्योंकि जिन्हें धर्म अधर्म वाग्ध का पाख्यायं विशेष रूप में ज्ञास नहीं है, उन्हें धर्म-अधर्मपावास्यस्वरूप से धर्म-अधमरूप धमों में उक्त शङ्का होने में कोई बाधा नहीं हो सकती।
[पुण्य-पाप के नियामक प्रागम का प्रामाण्य ] द्वितीय कारिका में पूर्वकारिका में उठायो गयो कारका का समाधान किया गया है. और यह समाधान अहम सब की व्युत्पत्ति के आधार पर इस अभिप्राय से सम्भव हुआ है कि R को सत्ता में प्रत्यक्षादि प्रमाण नहीं है, पक्ष आधि से घर न होने से ही वह अष्ट है। कारिका की अब इस प्रकार है
बष्ट की प्रामाणिकता के विषय में संशमहीम तत्वारियों का कहना है कि 'अष्ट' या आगम प्रमाण से सिव है, और मागम हर तथा पट से अधिमय होने के नाते पमाण है। जिस प्रकार जलकरणक सिधन इष्ट एवं से अविस्मने से सद्योषा 'पयसा मिति' यह वाक्य वाषित नहीं होता, उसी प्रकार अशष्टबोधक आगम भो बाधित नहीं हो सकता । 'अदिति आदि से ही पाप और विराति आदि से ही पृष्य होता है यह नियम भामम का विषय भी नहीं है. बयोंकि जितने भी मिलापोभ्य पदायें हैं वे सब InH के विषय ।। आमय यह है कि प्रसापनीय भावों का मनन्तमाग यद्यपि नियमशास्त्रप्रतिपाधववापिस के अन्तगत मतिज्ञान से धूत में अनिबद्ध भावों का भी प्रहण होने से उस मावों को सत्ता में भी आगमा प्रामाण्य अक्षण
कृत्रिम अर्थात किमी एक मानव से रचित होने से पीआरमको अप्रमाण नही कहा जा सकता,