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स्या टोका प हि वि०
३११ एवम्-उक्तविशा, अर्थ मन्तव, ५.. तिमासगीरहनवाद: उपपसितम्यूक्ते न घटने । उपपत्तिच प्रतिस् मागक्तंस | तामेव साधारणीकृत्याहपन्धासकाशात न्युनत्वे किचिदवन्धवदनित्ये अतिरिक्तत्वे व बन्धाभाववत्तित्वे सति तद्भावानुपपसितः अप्रसङ्गानि प्रसाराभ्यां मध्यवन्धनीयभावाऽव्यवस्थाप्रसाद्धेनोः । शब्दमया प्रागुनदोपस्मारणमेदिति ध्येयम् ॥१०॥
नतः किम् ? इत्यार . मूलम्-तस्मात् तदाःमनो भिन्न सञ्चि नामयोग च ।
अष्टमवगन्तव्यं तस्य शस्यादिसाधकम् ॥१.३।। तस्मात् उक्तहेतो), सत् नरादिमित्र्यप्रयोजकम्, आन्मनः, साझाशाद् भिन्न-पृथए दृश्यमूने न त्वात्मगुणरूप, सत् पारमार्थिक न तु कल्पनोपारुई, चित्रं मानास्वभावं न स्वेकमातीयम्, मतमयोगमा:मप्रदेशेषु क्षीरनीरन्यायेनानुभविष्टं न स्वात्मनः कूटस्यात् पृषगेय चिवत्तेमानं, सपेकचुकापर्यव त्रा वर्नमानम् । चः समुनये, मेन प्रवाइतोअनादियादि समुधोयने । नरपभात्मनः शस्त्याः पराभिमानमत्यादिपक्षस्य सापक-निर्वाहकम्, भाई-कर्म, गनगन्तव्यम् मदिशा पालोचनीयम् ॥१०६|| कोई प्रमाण नहीं है' यह गक्ष जिसे सभी प्रस्तुत किया गया है याद पूर्वोक्तरीत्या युक्ति से समर्थित नहीं हो पाता जैसे कि प्रत्येक पक्ष के लिये सम्भावित युक्ति का उल्लेख किया जा चुका । सामान्यरूप से दोनों पक्षों (शक्ति-चासत्रा) के सम्बन्ध में यह कदा जा सकता है कि शफि पा यासमा को बन्ध-अहट से न्यूमति किसो बस में अत्ति मानने पर, मधा 'गन्ध से अतिरिकम-साधन शून्य में सि मामने पर शक्ति या वासना बन्धन है और उसका शाश्रय यध्य है इस प्रकार का बध्यबन्धनभावन बन सकेगा क्योंकि पहले पक्ष में उस बद का संग्रह महो सकेगा जिस में शक्ति या पासमा न बोगी और सुसरे पक्ष में उस व्यक्ति का भी संग्रह होने लगेगा जो नित्य मुक्त हो चुका है। इस प्रकार शब्दातर से इस कारिफा में पूर्वोक दोष का स्मरण भाच कराया गया है ॥१-५||
चक्ति था वासना बद्दष्ट का स्थान नहीं ग्रहण कर सकती' स स्थापना से क्या उपलधि हुई प्रम का प्रस्तुत कारिका (१-६) में उसर दिया गया है।
[मात्मा से मिन्ना पौदल अट का स्वरूप शाक्ति पर्व वासना को अटकाना के थियन पसाये गये कारणों तथा पूर्वांक मम्य कारणों से पद मिज है कि मनुष्य, पशु, पक्षी, आदि रूप में भारमा के विरुध का सम्पायक अष्ट मात्मा से भिन्न एक भौमि द्रव्य है. गारमगुणरूप नहीं है पारमार्थिकसत् है. काल्पनिक नहीं , पर्व अनेकविध स्वभावों से सम्पन्न है, एकजातीय नहीं है। जिस प्रकार क्षीर में भीर. घुलमिल जाता है उसी प्रकार मान्मा के प्रदेशों में