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स्था का टोकाव it. पि. यते, तदाऽप्याइ–भावे या तइयार होकारे सत्र नदीमा फर्मता, पतस्तस्यावरणस्प निराकरणात्, व्यक्तिः भक्तेः, इति तयो क्यान्मनो: सका. पाद भेदसंस्थितिः भेदमर्यादा अस्ति' इत्पनुपश्यते । एवं चान्य आत्मा शत्र सा शक्तिः अन्या च शक्तिः या क्रिययाऽभिव्यज्यते, अन्यकच कर्म यदारणरूपं सदा नश्यति, इति प्रयसिद्धापपि कर्मणो नासिद्भिरित्पम्युच्चयः । शाम्धतशक्तेरात्माऽनतिरेकाच्च द्वयमेव वा पर्यषस्यति । वस्तुतः सा शक्तियदि वदैव क्रिययाऽभिव्यज्यते, वदा वदेव स्वोंस्पतिः स्यात । गदि च क्रियाजन्यावरणध्वंससहकता कालान्तर पर सा फल जननी स्वीक्रियते तदा किमतावत्कुमृष्टया तजन्यधर्मस्यैव स्वविपाककाछे फलजनकत्वादिति स्मर्वयम् ॥१०॥ इदमेवाहमूलम् -- पापं नजिनमेवास्तु त्रियान्तरांनंबन्धनम् ।
एवमिष्ठत्रियाजन्य पुण्य किमिति नेपयते । ॥११॥ शक्ति मन्य कार्यों के प्रति मान्नुत होते हुए भी प्रक्त क्रिया के कालान्तरमावी फल के प्रति आवृत' रहती है, तो भी शक्ति से अक्षय को अन्यधासिद्ध करने का लक्ष्य मही सिद्ध हो सकता. क्योकि इस प्रकार शक्ति का जो गायरण माना जायगा पारी श्ररया आषरण का अस्तित्य निर्विवाद सिम होगा, क्योंकि उक्त माम्यता के अनु. सार यह स्प है कि मारमा एक अन्य वस्तु जिसमें यह शक्ति रहती है, और शषित एक दुसरी यस्तु है जो क्रिया से व्यक्त होती है पर्थ कर्म भदए एक तीसरी वस्तु जो भाषरणकप है-क्रिया से जिस की निवृति होती है। इस प्रकार मात्मा शक्ति और उसका आवरण इन तीनों की सिद्धि होने से भावरणरूप में कर्म अट को सिसि अनिवार्य अद्यया पेसा कहिये कि-पआरमा को शाश्वती शक्ति मारमरूप ही इस से मिन्न नहीं है. अतः आत्मा और उस का भावरणकमे ये वो ही घस्तुयें सिख होती है। ___सम पात तो यह है कि भष्ट से भिन्न कदंगत शक्ति हो ही नहीं सकती क्योंकि यदि ऐसी को शक्ति मानी शायनी सो क्रिया से उस की भभिव्यक्ति क्रियाकाल में ही मानने पर उसी समय स्वर्ग की उत्पति का प्रसंग होगा और यवि किया से भावरण असो काने पर कालान्तर में हो उसे फल का जनक मामा जायगा तो था केवल एक फुसुष्ठिकल्पना ही होगी, इस से अच्छा तो यही होगा कि यह माना जाय कि क्रिया से धर्म कर बाट का अन्म होता है और यह धर्म की अपने परिपाककाल में फल का जनक होता है|||
[भाभक्रियाजन्य पाप को तरह शुभक्रिया जन्य पुण्य] इस कारिका (१०१) में पूर्वोक्त विषय को ही पर किया गया है, भी इस प्रकार हैयह कहा जा सकता है कि-'कतगत शक्ति से भिन्न एक वस्तु मो कालनिषिज