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________________ या क. टोका २२३७ ननन्यताबन्छपकस्योपक्षिनोंद्देश्यमायियसाचारमाविषयताम्यत्वं वा तदर्थः, বন নাথুরাবিবিসিস নবিকারূকাভিলাষখানাগলিখা 'मेत क्षति नानगान नन्सामग्रीनः' इत्यनुमिताबहेविषयकत्यादिनापि ज्ञानजन्य बाच्च नशेऽअन्यसत्यम निदान । जितु यः धिम् शंका प्रत्यक्ष के सम्बन्ध में उस मान्यता को बाधक नहीं हो सक, पर शानजन्यमान पदमाय हा अयं सामान्यतः मानमाष को जन्म ना का सानयापक न .न्नुि जा ज्ञान पावच्छिन्न जनता के घाययभून पान से युक्त गुरुप विमान दो पझार भी जम्पा का भनवालले इफस्य विषक्षित व का प्र य पात्र. निर्वाचन नदिषय कन्य । 'बहिः वायुपान' या प्रत्यक्ष जिस पुरुष | हाई पर यक्ष के पूर्व वायुनान से युक्त होता है. न किवति शान से युक्त श्रीनाद, मार घायुसान बालविषयकन्याछन जसकता का शाथय महो हाना, अत: * प्रत्यक्ष पक्षियपरम्प के सावनिम्तजनकता के भाभयभूत ज्ञान से पुन पुररनेवाले जाल की उम्पता का अमवर होने से उक्त प्रत्यक्ष में बनिया में अपना नापनि नदो हो सातो। दगो प्रकार पता बालमान बन अमिति के प्रति यहिविषयमानायनशान के कारण नापू । अनुमान का गानयभूम पुरुर भी विषय या ग : I TI प्राधमा साग से युक्त होता, अतः उस अनुमति का नमक 1. पजवषयकवाधारसन्नजनकता को आश्रयनशानयुक्त, घुमर में न रहने के कारण उ म हा जयनारस कम्य प्रत्यक्षात यांविषयकाय * विवक्षित मा.न का जप का आनन्छेक होने में बाधा नी डाला , अतः पणिविषयमय के घूमनामी का जाय तापकने पर भी प्रत्यक्ष में यदि श में अपत्य सत्य का भापत्ति नहीं है। सकता । [पुन: अप्रत्यय के आपात का परिकार] वायनानवच्छवाय #r शान वशेष का जन्यतानयरछेदकत्व' अर्थ मानने एस मा मनोक..."धनामक एक व्यक्ति का स्वरूप से ये स प्रधा। प्रत्यक्ष होता है, चैत्रय यतः एक ही व्यक्ति का धर्म है। अतः उस व्यक्ति के पूर्व काही यच अन्य का प्रार सम्भय महोने से उस प्रत्यक्ष के प्रति प्रायज्ञान को को माना जा सक, I उनी कारण वैधत्य विषयमानस्यायरिछतजनमापसी | 1 चैत्रत्याविपय कस्य स्याम्मिानना के आश्रयभून पुगत पुरुप में बहने वाले सान की प्रन्यता के अजयमका में शाय न जान से कम्यक्ष में चयविषयकप्रत्याभव को अनुपातो कामी. मतः एक शिशाय यस्य की शानजन्यानवम्छे स्व' का अर्थ नहों माना : सकता। ये बात से उना लौकिकमायस में शि में अप्रत्यक्षाब की आगत फागदार मुर-हमा प्रकार यद भी शंका हो सकती है कि-"अमुक शाम को पाममा से मान्मा # अमुक भान को को 'अहम मुकशानयान इस प्रकार की अनुमिति ती ६. वह मुकमाल अंश में तो परोक्ष है पर आई अंश में प्रत्यक्ष
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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