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घासासमुष्यय-स्तबक र लोकन इस प्रसंग में तीसरी बार उन्होंने यह भी कही कि यदि हान को मसिहाकार माना जायगा सो विषय को भी मरसिंहाकार मानने में आपत्ति नहीं की जा सकती, और यदि विषय को भी मरसिहाकार मान लिया जायगा तो ममेकाम्सपाय की भापति भनिवार्य हो जायगी, अतः भने काम्तयाद को स्वीकार न करने वाले नैयायिक मादि के लिये रसिंहाकार बाग का मानना चिस at 4 समना
[नृतपक्षणभाविज्ञान को द्वितीय क्षणमावत्रान का प्राहक मानने में मापति | घटसान के तीसरे क्षण में होने पाले 'घट'मानामि' इस मामसमान को सो क्षण में होने वाले 'घटीयशान इस नृसिंहाकारमान का प्रारक मानने पर पर भापति हो सकती है कि-'भूसिहाकारमान मानानन्ध को स्वरुपता प्राप्त करता है, मान में हामरख के चैशिएप को तो प्राण नहीं करता, मतः 'घटं मामामि समान में ग्रामरवा भय के वैशिष्टय का भान नहीं हो सकता, क्रस घटत्वप्रकारकायाभप के बी वैशिश्य का भागमो सकता है, क्योंकि नुसिंहाकारमान सान में घटत्वप्रकारकत्व को प्रहण कर लेता।___ यशोषिजय उपाध्यायजी ने इस भापति को कोई महत्व नही दिया है, क्योंकि इस भापत्ति का समाधान ग ने कर दिया है। मिश्र ने इस मापति के समाधान में यह कहा कि शान का निरूपण उसके समस्त [घचयों द्वारा होता है' यह नियम नही, किन्तु हान का मिकरण उसके विषय जाग होता है' इतना ही नियम है, और इसका निधोंड किसी पक विषय द्वारा मान का निरूपण मानने से भी हो जाता है। प्रकृत में सृसिंहाकार ज्ञान के वो पिपय है, कोयत्वेन बान और कामस्य । घटीयन साम का भान होने ले घर भी उसका विषय है। इसी लिये या घरवकारक भविशेष्यक मी है। भसः 'घट गानामि' इस शान में घटरूप विषय के द्वारा नृसिहाकार ज्ञान का माम होने से, मानस्वरूप विषय के द्वारा उसका मान न होने पर भी 'सान विषय से निप्प होता है' इस नियम में कोई त्रुटि नहीं हो सकती।'
भाग्य यह है कि 'घट जानामि' यह बान घायशिशान के वैशिप को विषय करता है, हामस्वविशिए के वैशिष्ट्य को विषय नहीं करता, बानाथ सो घीयत्यरूप से भासित होने वाले सिंहाकार ज्ञान में विशेषणरूप से भासित हो जाना है।
व्यवसाय को स्थप्रकाश मानगे पर यर शंका हो सकती है कि- 'व्यवसाथ स्वप्रकाश होने पर म्वविषयक मी होगा और स्थविषयक होने से प्रसि की अपेक्षा अधिक विष एक हो जाने से प्रन्ति का कारण न हो सकेगा, क्योकि प्रवृत्ति के प्रति समानषिययकसान को ही कामम माना जाता है किन्तु इस शंका का समाधान खुलम है और
१. इस मान्यता के विपरीत रद शंका सस्त. -'पर जानाम' इस मान में पीयत्वेन सिंहकार शाम का मान बभव नही है क्यों के गुर क्ष। तिहा कारखानदारा घटीपरपन यमाय गृहीत होता है, न कि स्षय सिहाकार शान-जिना उरार कर दिया जा सकता है कि पदोस्चन व्यवसाय के शान में गो घटीयरवेन मिहाकार शान के शमय का शान होने में कोई बाधा नहीं हो सकता, क्योंकि विशिष्टवैशिष्ट यज्ञान में विशेषणताबछेदकपारफशान को जो कारणता होती है उसके लिये कार्यकारणभूत पानी में विशेषगतानन्ध र से गांक के गान गया हो।