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________________ स्था- क. ठीका प. वि. देन तस्य प्रत्यक्षत्वम्, इति स्वविपत्वाशे न नथात्वम्, ज्ञानसामग्या मानस्वस्येच अन्यतावच्छेदकत्वात. विशेपसामग्यां च समातिनसातवान्य कस्यात् । . वश्यवेद्यत्या स्वप्रकारात्वम्, नो वेत, या बित्तिने वैद्यते तदधीनसस्वस्य विषयपर्यन्तस्याऽतम स्यादिति यायम्, सर्वासा वित्तीनां ज्ञानज्ञानत्वेनावश्यवेधत्वात् । 'परप्रकाशेऽनवस्थानान स्वप्रकासिद्धिरित्यपि न युक्तम् , स्वप्रकाशवस्यापि परिशेषानुमेयतया तदनुमितिस्वप्रकाशनाया अप्यनुमानान्तरमभ्यतयाऽनयस्यासाभ्यात् , विषयान्तरसंघासदिना प्रतिवन्धन तबङ्गस्याप्युभयत्र साम्यात् । इत्यत आह जिस कान में रहता है, यह नाम उस अंश में प्रत्यक्ष होता है पञ्च नियम है, जैसे पक्षुः पाउसग्निकार्य के अनम्तर होने वाले सान में प्रामसम्यता का अनघच्छेदक और एवबाभु. पम्प परिकषिय ज्ञान की अनुःघटसग्निकर्षाविरूप सामग्री का जम्यतावनोदक घटविषय कर पाना है इस लिये धन्न शाम घर अंश में श्यश्न होता है किन्तु 'घटम जानामि' रयाकारक घटप्रत्यक्ष में विद्यमान शामयिषयकल्प प्रान सामान्य की मामनी काही अन्य सापच्नेदक होता है। क्योंकि ज्ञान के त्रिपुटीविषयकायमन में सर्वज्ञानमुसिमानविशेषसाममोजन्पना के प्रति मसत्ता हो जाने के कारण मानविशेषनाममो का जम्यतस्यमयक नही होता, अतः शाम को स्वशि में गायनका मानमा सम्भय नहीं हो सकता । ज्ञान की ज्ञानवेचना के नियम 'फा मन] यदि यह है कि-'साम को ज्ञानवेध मामना आवश्यक है, अन्यथा जो मानविषित होगा उसकी सत्ता सिद्ध हो सकेगी, क्योकि फिली भी वस्तु की सत्ता उसके मान से ही सिम होती है। फलमः वदमान सिम मूल विषय के ज्ञान की परम्परा में जल मूल विषय तक की सना र्सवादग्रस्त हो जायगी। क्योंकि स्तिमज्ञान के असत् होने पर उसका विषयभूत लान अलन्, एध उसमें असत् होने पर उसका विषय भत मान अस होता आगया और अन्ततोगत्वा प्रथमाझान के असत् होने से मूल यिकीही सत्ता का लोगो जायगा। लिये यह परम सभी मानवानवेधा मान आय, और मन की शानद्यता का यह नियम अन्तिम नाम मसत् नहोसाय पसलिये. ग्राम को स्वप्रकाश माने बिना सम्भव नह है. मन शान को स्वप्रकाश मात्रामा नावश्यक जं. गप हैE IE , श्योकि सभी बात को श्राममात्र मानने से भी ज्ञान की अवश्ययेचना की आपत्ति हो सकती है, अतः मान की स्वकाशता अनायस्थक यदि कि-"क्षान को जानान्तर से मकान मानने पर प्रथमहाम को वितीय से, द्वितीय को तुतीष से. मुनीर को पतुर्थ से. इस कम से प्रत्येक ज्ञान को स्वोसरयती वान से प्रकाश्य मानने पर अनर्वाक्थिन जान की कल्पना में गौरव होगा" तो यक नही है, क्योंकि गा वीष नोसान के स्वयकाशाव पक्ष में भी अनिवार्य है। जैसे गानस्वावधानी के मा में भी मान स्वप्रकाश है. उसका स्वकाशत्व तो स्वमकामा हैनी, मतः स्वप्रकाशम्बो अनुमानध मानमा होगा, फिर उस अनुमान
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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