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________________ सारूषपाचांसमुख्य-क र लो०० ___ न च छायायामतिव्याशिवारणाय 'स्वन्यूनर्सस्यपाद्यालोकसंपलने सतीति विशेषणदामाऽऽवश्यकस्यात्, तदानीं व पाशाकोकस्य स्वापिकसंख्यत्वाम्न दोष पति पाच्यम् । तषिमातिरिक्तामदिनश्चिमायालोकाभावानामेयाधिकस्यात्, तामरूपाऽअनिसन्धानेऽप्यन्धतमसत्यापनुभवाच । एतेन 'रूपस्वग्राहकतेमापतितस्तदवारतरविघोषणाकपावसासाऽभाशेचनमसम्, रूपत्वावान्तरमासिग्राहकतेजःसंवलिना प्रौदप्रकाश्यावसेजःसंसर्गाभावपळाया, यापदालोकामाचश्वाऽन्धसमसम्' इति निरस्लग | पानगर्भतयाऽवतमामादीनामचा पत्तमसमान, ताशमात्यसिद्ध्या तासम्शानविशेषरिचायितजासिविचोपविश्विद्यालोकनिशाइसम्भावाति विक्र । माय । पर्व को निमावि रुप * अपेक्षाशि से उत्पन्न बस्य का तथा किस पुरुष के पुअिधिशेष को प्रतियोगितायछेदक माना शाय? फलतः अनेक ग्यों से किया अनेक मियिझेब से भवच्छिम्नप्रतियोगिता के मिरूपक मनेक अभाव को संमोकप मागने में भर्भातगौरव होगा। 'तम पक अश्रय भभाष है, मधवा तमस्य एक सम्पर उचिसा मानने पर यषि उपर्युक्त वाष नहीं हो सकते, तथापि इस प्रकार की कल्पना करने पाले को का असरमा कठिन होगा कि अब नया समय में अखपता की ममता करनी है नय तम में व्यरूपता का स्वीकार करने में क्या नानि है? तम को अभावरूप मानने पर सरदोष पर है कि यदि भभाषक छोगा नो अभाव में तो उत्कर्ष-मपकर्ष की कल्पना को नहीं सकतीः तो फिर परफटतम 'मग्यतमल है और अपकप्त सम 'मयतमस' स प्रकारः समोमेव की कल्पना मक सकेगी महद्-भूत-मनभिभूतरूपषत् यापत् देश का भभाय 'बनगम' है और इस प्रकार के कतिपयतेज का प्रभाष 'अवतमाम इस प्रकार सम का विभाजन न्यायसंगत महीनो सकता, पोंकि पेसा मानने एक दिन में प्रकट मालोक के समय भी कतिपय तारतेम का अमाप होने से भवसमस के ग्यवहार की आपत्ति होगी। भिन्घतमसन्मयनमस के लक्षण की अनुपात यदि यह कहा जाय कि-"महत्व पर्व धुमत तथा मनभिभूलकप जिन मा में होता है उनमें से कतिपय तेज के प्रभाष को मषतमस माने पर छाया में अतिव्यानिका धारणा करने के लिये उस भभाव में उस ममाव से अथवा उसकप्रतियोगीले अस्पत. स्यक यालालोक संवला का निवेश करना होगा। सेवलम का अर्थ है पक देश मोर पक कालमें मशिनस्य । इस संघलन का निवेश करने पर मवनमल का स्वका पद बनेगा कि स्थकी भरक्षा अथवा स्वातियोगो की अपेक्षा भत्यसण्या बाबालक से क्षमामदेवारण और स्वसमानकालाव उभयसम्बन्धसे विशिष्ट भो कतिपय उत्तका सभाष भषसमस है| लक्षण का या स्वरूप होने पर छाया में मिपातिबोगी। पोंकि उसप्रकार के कतिपय तेज के जितने मभाष के रहने पर छापा का व्यवहार साखन समायोप्रथा उन सभायोकेशियोणिों से युनलायकवाखालोक
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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