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स्था का टीका वरि. वि.
..... २२०... म वा घटस्वाधवकिछन्न प्रकारत्वातिरिक्तप्रकारस्थानच्छिन्नाभावत्वचौफिकविषयत्वावधिनाभावकौकिकषियताकप्रत्यक्षे, पटस्वातिरिक्तधर्मावच्छिन्नप्रतियोगित्वसम्पभावच्छिन्नप्रकारषानिरूपितत्वे सत्यभावत्वविषयत्वापच्छिन्नाभावलौकिक-विषयताकप्रत्यक्ष वा पटवस्थापकिन्नप्रकारताकसानहरवेऽपि निर्वाहा, समीषियताया
पर्वोक्त नियम में विशेषप्रवेश से दोषाभाव को शङ्का का उत्तर यदि को कि-"उक्त नियम के दूसरे अर्थ में 'यरिकश्मिरका व्यक्तिनिष्ठतद्धर्मव्याप्यधर्मायनिवार्यता' के स्थान में 'परिमित्कार्यव्यक्तिनिष्ठतवर्मष्याप्यव्यापक भावनिकारणता' का प्रवेश कर देने पर गह दोष नहीं होगा, क्योंकि वाघमानाभाष का कार्यतापनवकविशिषशित्व मो अनुमितिरष के व्याप्य नमसूअनुमितिरष का ज्यापक है, अतः विशिएशिस्वावनि की सत्पत्ति में मपेक्षणीय है"-तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि उक्त मियम का जो पहला अर्थ बताया गया है उसको अपेक्षा इस मय में गौरव है, और दूसरी बात यह है कि इस दूसरे परिका अर्थ को स्वीकार करने पर मो चल दिसम्बचिशेषणता से 'मभाव!' तथा 'म' इत्याकारकप्रत्यक्षों की भापति का परिहार हो जाता है क्योंकि घटस्वादिमन्यतमविशिषियकमावत्य अभावविषयकलौकिकप्रत्यक्षत्व का व्यापक है, अतः तदस्लिाम के कारण घटादिवान का सग्निधान ममाविषयकलौकिकप्रत्यक्षत्वापत्रिजग्न की उत्पत्ति में अपेक्षित हो जाता है और यह केवल इन्द्रियासम्बधिशेषणताकाल में होता नहीं है।
विचार करने पर वादी के उक्त कथन से भी उसके 'तम सेमोऽभाषकपल साधनोय पक्ष की सिद्धि नहीं होती, क्योंकि तम यदि तेसोऽभावरूप है, सब अपत नियम के अनुसार जोहान के भसन्निधान में उसका प्रत्यक्ष नहीं होना चाहिये, किन्तु होता है। मता तमको अभावरूप कहना असंगत है।
विशिष्ट कार्यकारणभाव से विवाह होने का शका का उसर] पस्वादि धमों से अग्नि प्रकारशा से अतिरिक्त क्रिश्चियमावहिलम प्रका. रता से मनस्किान जो अभावनिउशौकिकविषयता, ताशषिषयताशालीप्रत्यक्ष में मचा घढस्वादि से अतिरिक्त धर्मों से अपरिमन्न प्रतियोगिश्वसम्मग्यास्मियकारता से ममकिन प्रो सभापत्यविषयता से भवच्छिन्न ममाविषयता, सारशविषयताशाली प्रत्यक्ष में धटरवादियान का पान कारण है, ऐसा मानने पर भी कायल द्रिय 'सम्पपिलेपणता से 'अमावस्याहारक पर्व 'स्याकारकप्रत्यक्ष का परिवारमो सकता है, क्योंकि प्रत्यक्षों में नो अमावषिषयता है बह अमावस्ववियता से भयधिमा पर्थ उपस प्रकारताओं से मनिरूपित है, अत: घटत्वाचवच्छिन्न शाम के कार्यतापजीदक से आक्राम्स इन प्ररपक्षों के प्रति घटादिहान की अपेक्षा होने से इसके अभाव में न प्रत्यक्षों की आपत्ति नहीं हो सकसी"-पर इस प्रकार के कार्यकारणभाष से भी सम की अमानकरता का निर्वाह नहीं हो सकता, पोंकि समाप्रत्यक्ष को तमोमिष्यविषयता भी तमहाविषयता से भयग्छिन्न होने के कारण अभायरषविषयता से सबसिन क्यों कि तमस्वसेजोऽभाषण से अतिरिक्त नहीं है।