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शास्त्रपातासमुच्चय-स्तबक ग्लो०७० इस्य पाभाषांशे निर्षिकस्पर्क, 'अमाषः' इत्याकारकप्रत्यक्षं च न जायते, निक्षिकप्रतियोगितानकार्यवाय पदकाकान्तेशाप्रत्यक्षस्य यत्किञ्चित्प्रतियोगिज्ञानेऽसंभवात् , पाषरप्रतियोगिज्ञानस्य पाइसंभवावः अभावत्वांशे निर्षिकरपक स्वभावांशे यत्किठिनत्मखियोगिविशिष्टविषयत्वात् यस्किळिचत्प्रतियोगिधासाध्यमेवेति नानुपपत्तिः। बिस्वेन तमम्प्रत्यक्ष स्वनुपपन्नम्, भमानांशे निर्विकल्पकवद् यावत्प्रतियगिधी कार्यता पच्छेदकानावरात्-इनि वाभ्यम्, केत्रलाभावत्यनिर्विकल्पकापत्तरभारत्वस्याऽखण्डवाव. पानिप्रतियोगितासम्म्य से ही होगा, और उसमें उक्त बाधमान शभाषसामान्य मै संयोगसम्बन्धायकवानप्रतियोगित्यसम्यग्वाचिन्नप्रतियोगिनाक घटाभाषविषयक होने से प्रतिबाधक हो जायगा । । उक्त बाधवान के भनन्तर संयोगसम्बाधापनिप्रतियोगिताकवाभाष का जो प्रत्पन होगा, यह '
नथाकारक ही हो सकता है।
[पांत का मार] तो यह ठीक नहीं है. मैं अभावामान योगािरिता प्रतियोगिताधिशेषसम्बधापछिम्मतियोगिताकपाभाष पो विषय करने वाला उक बाधमान संयोगसम्पन्धाचषिकानप्रतियोगितारूप प्रतियोगिताविशेषसम्बन्ध से ही अभाव में सम्मान का विरोधी छोगा, किन्तु प्रतियोगितासामाम्पसम्बन्ध से अभाव में घटमान का विरोधी नहीं होगा। पतः उक्त बाधमान के अनन्तर होनेयाले संयोगमभ्ययावकिमप्रतियोगिताकघरामाविषयकास्यक्ष में धमाव में प्रतियोगितासामान्यसम्बाप से घरका मान समय होने से उक्त घटाभाष के नायकारक प्रत्यक्ष की आपत्ति नहीं हो सकती। मम्प में प्रतियोगिरसम्बन्धच्छिम्मप्रतियोगितासम्बन से संयोग सम्मम्माभिमप्रतियोगितासम्याधापच्छिन्नप्रतियोगिताकघटामाव में घट का भान होने की बात की गयो है, सो संयोगसम्बन्धावन्छिाससियोगिताक घटाभाष के साथ घटका प्रतियोगिषसम्पन्धावरिन्नप्रतियागितासम्बन्ध न होने से आपासता असंगत प्रसोत होती है, किन्तु उक्त प्राधमान काल में उषत घटाभाव में प्रतियोगिस्वसम्बरमा बलिप्रतियोगितामान से घट के भासक दोष का सन्निधान बने पर भ्रमय उम्क मागप्रमोने से यह भी धर्समत नहीं है।
[अमावांश में निर्विकल्पकप्रत्यक्ष की आपत्ति भी नहीं है] उसरी बात पर कि मभावमत्यक्ष और प्रतियोगितान के बीच जो कार्यकारण भार माना जाता है, उसे 'बत्यापयन्छिानप्रतियोगिताकामाय के प्रत्यन में घटत्वादिप्रकारका कारण है, इस रूप में नहो म्बीकार किया जा सकता, क्योंकि घट जानकारी पर मी पठाभाषस्न घटाभाव का प्रत्यक्ष होने से व्यभिचार होभायगा भता बढत्याwिaप्रकारता से मध्य प्रतियोगित्वसम्बधावहिम्मतकारता से गणि पित ममाविषिषमताकमन्यक्ष में घटत्यादिप्रकारकहान कारण है"। इसी रूप में इस कार्यकारणभाव को स्वीकार करना होगा, भौर उस स्थिति में 'नस्याकारक परपस की भभाषनिधविषयता के किसी भी पतियोगित्वलाधावनिमकारता से निकपित न होने के कारण 'इत्याहारकपत्यक्ष प्रवत्वादिसमस्तधर्मप्रकारक काम के कार्य