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स्था-१० का . .
न च 'प्रतियोगितासम्पन्धामभिप्रतियोगितयाऽभावे घटवैशिष्टय विषयकत्वात् प्रतियोगितासामान्येन पटवाधग्रहाभावेऽपि संयोगादिसम्बन्धावधिानप्रतियोगितामा 'म स्टीयः' इति पारधीकाले संयोगादिना पटाभावादेः 'न' इत्याकारकप्रत्यलापतितवाऽपि प्रतियोगितासम्बन्धावमितियोगितया घटस्य प्रकारतया भाने पापकाभावात , घटत्वाचवचिन्नप्रकारवा-5न्य प्रकारत्वानिरूपिताऽभावविषयताप्रत्यक्षे घटादि. घियो हेसुस्वास; अन्यथा घटाघभावस्य पटाबभावत्वादिना हे व्यभिचारापतेः । प्रकार का प्रसाई: 1. स्टीयः' : दान मार के पूर्व में जातोपातो अमावस्वसामानाधिकरण्येम अभावविशेष में प्रतियोगितासम्बन्ध से पदभाव का विरोधी पोगा मही, भातः उसके बागमे पर भी अभाव में घट का भान सम्भय होने से 'म' स्याकारक प्रत्यक्ष को खापसिमको सकेगी । मौर यदि पहले प्रकार का 'मभाषो न घटीया' यहहान अभावप्रत्यक्ष के पूर्व रहेगा तो बच आहार्य होगा, क्योंकि उसमें विशेषण की मोर प्रतियोगिल्यसम्बन्धाष्टिलप्रतियोगिता के प्रवाभावरूप विशेषणभूत भावषिशेष में प्रनिमोगित्वसम्बन्धामछिन्नतियोगितारूप प्रतियोगिताविशेषसम्बन्ध से घटका मान होता है और विशेष्य की ओर अमायसामान्य में प्रतियोगिस्पसामान्यसम्पत्यायबदिशन्नमसियोगिता के घटाभाष का भान होता है अनः विशेषण की ओर ममावस्या सामानाधिकरण्येन फिधित प्रभाय में प्रतियोगिताधिशेरसम्पन्ध से घटमकारक और विशेष्य की ओर अमावस्यासमेत अभावसामान्य में प्रतियोगितासामान्यसम्पायन घटाभावप्रकारक होने से उसकी आहार्यरूपना मनिवार्य है, और इस प्रकार जब वह भाहार्य है तो हाहाय होने दी के कारण यह भी भभाष में प्रतियोगितासम्बन्ध से विशेषणषिधया घद के भान का विमोधी छोगा । अतः खसके रहने पर भी संभाष में घर का मान सम्भव होने से 'न' प्रत्याकारकपत्यश्व की भापत्ति म हो सकेगी।
|'न' इस्याकारक प्रत्यक्ष को पुनः आपत्ति] याद है :- "यह है कि 'भावो म घटीयः' इस अमाहार्यशाम में विशेषण भाग में प्रतियोगिस्तसम्बम्धाधारिमतियोगिमार.प प्रतियोगिताविशेषसम्बन्ध से ममाष में घट का प्रकार विधया भान होने से, उसे अभावत्वापरछेदेन अभाषसामान्य में प्रतियोगितासामान्यसम्बन्धाचनमा प्रतियोगिताकघरामाविषयक नहीं माना जा सकता मतः पह प्रतियोगितासम्बाघ से थमाष में घनभान का विरोधी महो हो सकता। किन्तु प्रतियोगित्यसम्बम्धावविहान प्रतियोगितासम्बन्ध से घर के साथ संयोग लम्बाधाविकालप्रतिपोगितालाप मे घराभाव का विरोध न होने से, अकलाम में अभाव में योगसम्म ग्घावनिमप्रतियोगितासम्बन्धानमग्नप्रतियोगिताक पठामाथ का भान हो सकता है। अतः उस मान से प्रभाव में संयोगसम्बाधामप्रतियोगितासम्बाध से प्रभास का प्रतिया हो सकता है। फलनः 'शभाषो म घटीय' रस बाघहान के अनम्तर संपोगसम्बग्धापरिहानप्रतियोगिताकपदोभाव को विषय करने
पाथाकारकपस्या की आपत्ति हो सकती है, क्योंकि इस अभाव में यदि पद का भान होगा तो संयोगसम्प