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________________ . . .. २५ स्था क० टीका प हिं० वि० स्थेनाऽन्यन्चाऽपकृष्टगुरुत्वहेतृत्वे उत्कृष्टगुरुत्वप्रतिवन्धकत्ये च गौरवाद्, इत्यन्या विस्तर।। तस्मात् कश्चित् परमाण्वात्मकमेव स्थूलत्वं परमाणुपु सदेवोत्पाते, इत्युपचयेन सिद्धम् ॥५०॥ न चैव द्रव्यरूपेणाणा स्थूलत्वस्येव प्रत्येकावस्थायां भूतेषु तथा चैतन्यस्य सचेइप्पनुपपचिचिरहात् सिद्धं न समीडितम् , इत्यत्राह--- अतिरिक्त अवयवी के गुरुत्व से उन्नमनाधिक्य को भापति] अषयों में अतिरिक्त भषयपी को सत्ता मानने में एक ओर दोष, पद यह कि सो मासे तौल के इव्यकों से यदि एक अतिरिकद्रव्य की उत्पत्ति होगी तो उसका पष उस के भषयवभूत सो द्रव्यकों का मिलितगुयत्व केवल अपययों के गुरुप से मधिक होगा, फलतः सो मासे के सो व्यकणों के गुमय से अल्पगुहस्य के किसी व्य से केवल सो प्रव्यको एवं उनसे उत्पन्न अतिरिक्त प्रयों को तोलने पर उनकी भवनतियों में साम्य न हो सकेगा । यदि यह कहा जाय कि-"अषयषी का गुयाय भवयी के गुरुत्य से भत्यात अपार धोता है अतः असे समामगुरुत्व वाले दो प्रज्यों के नोकने पर किसी एक भोर अस्पात अपकरगुरुत्य वाके किसी शुष कण के संपर्क से गुरुम्प का आधिक्य होने पर भी उनकी अधनतियों में कोई भातर नहीं होता किम्नु दोनों ही अवनति समान हो होती है उसी प्रकार मन्यात अपकर गुवत्व के मामयभूत मषयवी के साहचर्य से भषयवी युक्त अषयवों की मोर गुम्व का माचिस्य होने पर मी केवल भषयों तथ अचयपीयुक्त भवयवों को तोलने पर उनमें हुण्य मधमति की उपपत्ति हो सकती है" तो यह ठीक नही हो सकता क्योंकि यह बात सभी संभव हो सकता है जब मंतिममवयपी को विशेषरूप से मत्यन्त अपशगुरुत्व का कारणे मोर उत्कपरशुरुष का प्रतिबन्धक माना जाय जो गौरप दोष के कारण मर्सभव है। इस विषय का विस्तव विचार अग्या किया गया है। __संपूर्ण विचार का निश्कर्ष यह है कि स्थूलत्य कचित्-वव्यरूप से परमाणुसकर ही होता है अतः इम्यकप से पूर्वतः विधमान ही स्थूलम्ब कालान्तर में कारणों का सन्निधान होने पर पायरूप से परमाणुषों में उत्पन्न होता है यह उपमयसिस तथ्य की माप है ५०॥ [स्थलब की तरह चैतन्य को भी भूतसंघातजन्य नई कह सकते प्रस्तुत चर्चा के सम्म में यह कहा जा सकता है कि-"जैसे स्पलय पर से परमाणुषों में मपमतः विद्यमान रहता है और कालास्तर में परमाणुवों का विशिष्ट सनि घाम होने पर पर्यायरूप से जनमें उसका मम्म होता है उसी प्रकार यह मानने में भी कोई अनुपपत्ति नहीं है कि शरीर घरक पृथयो, जल भावि भूतदयों के पृषक भवस्थान काल में उनमें सम्य द्रव्यरूप से विद्यमान रहता है और बाद में उम भूतो का विशिषर सानिध्य सम्पन होने पर उनमें पर्याधरूप से चैतम्य का उदय होता है। मोर पा सा. बा. १
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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