SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १ ) पिवद्ध बिल रहते है । उसके आजू बाजू अनेक प्रकार के प्रकीशांक रहते हैं गाथा - तेरादिहि निद्दय श्र उवद्धा दिशासुविविसासु । उगवरराव बालादि एक केकेनयाकमसो ॥२॥ अब प्रत्येक पटल में रिण बद्ध कितने हैं सो आगे के सूत्र में कहते हैं । चतुरुत्तर षड शत नव सहस्र श्ररिण वद्धानि ॥४॥ रत्नप्रभा के १३ पटलों में ४४२० श्रेणि बद्ध हैं । वंशा में २६०४, मेघा में १४७६, और अंजना के सात पटलों में ७०० श्रेणि वद्ध हैं। अरिष्टा के पांच पटलों में २६०, मघवा के तीन पटलों में ६०, और महातमा के एक पटल में ४ श्रं रिण वद्ध है । इनके नाम पूर्वादि दिशाओं में काल, महाकाल, रौरव, श्रम, महारौरव, आदि हैं। यह सभी मिलकर ९६०४ श्ररिए वद्ध होते हैं । इन श्रेणिवद्धों के बोच में प्रकीर्णक बिल कितने हैं, सो श्रागे के सूत्र द्वारा कहते हैं । क्ष त्र्यशीतिलचन अतिसहस्रत्रिशसनपंचाशत्प्रकीकाः ||५|| १ घर्मा में २६६५५६२ प्रकीर्णक हैं । २ वंशा में २४३७३०५ प्रकीर्णक हैं । ३ मेघा में १४६६५१५ प्रकीर्णक हैं । ४ अंजना में ६६९२६३ प्रकीर्णक है । ५ अरिष्टा में २६६७३५ प्रकीक हैं । ६ मघवी में ६६६३२ प्रकीक हूँ. । ७ माघवी में प्रकीर्णक होते हैं । " इनके सम्पूर्ण प्रकीर्णक मिलकर ८३६०३४७ होते हैं। इनके मन्दर विल की संख्या बताने को सूत्र कहते हैं । चतुरशीतिलक्षविजानि ॥६॥ श्रर्थ १--धर्मा में ३० लाख बिल हैं । २ वंशा में २५ लाख बिल हैं । ३ मेघा में १५ लाख बिल हैं । ४ अंजना में १० लाख बिल हैं ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy