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________________ १८०) गाथा २--- रयनप्पहासिहा, खरभागापंकापबहुल भागोति । सोलस चौरासिदि जोयन सहस्स वाहल्ला ॥१॥ प्रर्थ—खर भाग १६ हजार योजन है । पंक भाग ८४ हजार योजन और अन्बहुलभाग ८० हजार है । अव्हुल भाग ६० पोजन है कुल १ लाख के ऊपर ५० हजार योजन वाला रत्नं प्रभा है। उससे नीचे की भूमियाँ क्रमश:--३२००० हजार २८००० हजार २४००० हजार २०००० हजार १६००० हजार पाठ हजार बाहुल्य ऊंचाई वाली है । और सप्तम नरक के नीचे के भाग से लेकर १००० योजन प्रमाण को छोड़कर प्रस्तार क्रम से बिल हैं। एकोमपंचाशत् पटलानि ॥३॥ सात नरकों के अंतर्गत रहने वाले ४६ पटल इस प्रकार से हैं। १ सीमान्त, २ निरय, ३ रौरव, ४ भ्रान्त, ५ उद्भ्रान्त, ६ सम्भ्रान्त, ७ असम्भ्रान्त, ८ विभ्रान्त, ६ अस्त, १० त्रसित, ११ वक्रान्त, १२ अवकान्त, १३ धर्म यह पहिले नरक में १३ इन्द्रक हैं। १ ततक, २ स्तनक, ३ वनक, ४ मनक, ५ खडा, ६ डिका, ७ जिह्वा, ८ जिव्हक, हनोल, १० लोलक, ११ लोलवत्त, १२ पटल वंशा नाम की दूसरी पृथ्वी में हैं। १ तप्त, २ तपित, ३ तपण ४ तापण, ५ निदाथ, ६ उज्वलका, ७ प्रज्वलिका, संज्वलिका, ६ संप्रज्वालिका ये नव पटल मेघा नाम की तीसरी पृथ्वी में हैं। १ पार, २ मार, ३ तार, ४ वर्चस्क, ५ तम ६ फडा ७ फजाय, यह सात इन्द्रक अंजना नाम की चौथी पृथ्वी में हैं। १ तदुक, २ भ्रमक, ३ झषक, ४ अन्ध, ५ तमिथ, यह पाँच इन्द्रक अरिष्टा नामक नरक में हैं। हिम, वार्धम लल्लक, यह तीन इन्द्रक मधवा नाम की छठी पृथ्वी अवधिस्थान नाम के इन्द्रक माधवी नाम की सातवीं पृथ्वी में है। पटल के मध्य में इन्द्रकं होते हैं। उन इन्द्रकों की प्रा0 विशामों में
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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