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पंच महाकल्पाणानि ॥ १६ ॥ तीर्थकरी क र महाकल्पारण होते हैं (1) गर्भावतरण, (२) जन्माभिषेक, (३) निष्क्रमण (दीक्षा ग्रहण), (४) केवलज्ञान और (५) निर्वाण ।
सम्वसिद्धिठारगा अवइणण। उसहधम्मपदितिया। विजयादरणजिया चंदप्पहवाइजयंता दु ।।५२२॥ अपराजिताभिधारणा अरणमिमल्लीनो नेमिणाहोह । सुमई जयंतठारणा प्रारगजुगलाय सुविहिसीलसया ॥५२३॥ पुष्फोत्तराभिधाणा प्रांतसेयंसवट्ठमारणजिरणा । विमला य सहाराराक्षार कप्पा य सुवदापासा ॥५२४॥ हेट्ठियमज्झिमजबरिम गेवज्जादागदा महासत्ता । सभवसुपासपउमा महसुक्का वासपुरजजिणे ॥५२५॥
(चौ० प्र०)सिलोण्पणपति समस्त देव इन्द्र जो देखने वाली जनता को तथा अपने आपको भी कल्याण कारक (पुण्य बन्ध करने वाला) महान उत्सव करते हैं वह काल्याशाक' कहलाता है। ऐसे महान उत्सव तीर्थंकरों के जीवन में ५ बार होते हैं [१] गर्भ में प्राते समय, [२] जन्म के समय, [६] महाव्रती दीक्षा लेते समय, [४] केवल ज्ञान हो जाने पर तथा [५] मोक्ष हो जाने के समय ।
तीर्थकर के अपनी माता के गर्भ में प्राने से ६ मास पहले सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र का आसन कम्पायमान होता है । तब वह अवधिज्ञान से ६ मास पश्चात् होने वाले तीर्थंकर के गर्भावतरण को जानकर श्री. ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी प्रादि ५६ कुगारिका [ प्राजन्म कुमारी रहने वाली ] देवियों को तीर्थंकर की माता का गर्भशोधन करने के लिए भेजता है तथा कुबेर को तीर्थंकर के माता पिता के घर पर प्रतिदिन तीन समय साढ़े तीन करोड़ रत्न बरसा की प्राज्ञा देता है जोकि जन्म होने तक [१५ मास] बरसते रहते हैं । छः मास पीछे जब तीर्थंकर माता के गर्भ में पाते हैं तब माता को रात्रि के अन्तिम पहर में निम्नलिखित १६ स्वप्न दिखाई देते हैं---
१ हाथी, २ बैल, ३ सिंह, ४ लक्ष्मी, ५ दो माला, ६ चन्द्र, ७ सूर्य, ६ दो मछलियां, ह जल से भरे हुए दो सूवर्ण कलश, १० कमलों से भरा हुअा तालाब ११ समुद्र १२ सिंहासन १३ देव विमान १४ धरणीन्द्र का । भवन, १५ रत्नों का ढेर, १६ अग्नि ।