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अनुभाग शक्ति होती हैं। अघाति कर्मों की अशुभ प्रकृतियोंमें नीम, कांजी, विष, हलाहल समान अनुभाग शक्ति होती है । शुभ अघाति कर्मों में गुड़, खांड, मिश्री
और अमृत के समान अनुभाग शक्ति होती है। ये कर्म आत्माके साथ एक क्षेत्रावगाह रूपमें दोनों एक रूप मालूम होने पर भी प्रात्म-अनुभवो जीब अपनी बिबेक शक्ति द्वारा इस आत्मा को उन कर्मो से अलग निकाल कर प्रात्म-स्वरुप को भिन्न कर सकते हैं।
अब कर्मों को बन्ध-सत्व-उदय त्रिभंगी का निरूपण करते हैं-- रामिऊरण नेमिचन्दं असहायपरक्कम महावीर।
बंधुदयसत्तजुत्तं प्रोपावेसे सयं बोच्छं ।४५।
अर्थ-मैं असहाय पराक्रम वाले महावीर; चन्द्र समान शीतल प्रकाशमान भगवान नेमिनाथ को नमस्कार करके कर्मों के बंध, उदय, सत्ता को गुणस्थानों, तथा मानणाओं को बतलाता हूँ।
- वेहोदयेम सहिमो जीवो माहरदि कम्मनोकर्म । । पडिसमयं सम्वग्गं तत्तासयपिउनोच जलं ।४६।
अर्थ-जिस तरह लोहे का गर्म गोला पानी में रख दिया जावे तो वह वारों ओर से पानी को अपनी और खींचता रहता है इसी प्रकार देह-धारों आत्मा प्रति समय सब ओर से कार्माण नोकार्माण वर्गणाओं को ग्रहण करता रहता है। . सिद्धाणंतिमभागो अभवसिद्धादर्णतगुणमेव ।
समयपधखं बंधवि जोगवसादो दु विसरित्यं ।४७।
अर्थ संसारी जीव प्रति समय एक समय-प्रबद्ध { एक समय में बंधने वाले कर्म वर्गणाओं) को बांधता है, उस समय:प्रबद्ध में सिद्ध राशि के अनन्त वें भाग तथा अभव्य राशि से अनन्तगुरणे प्रमाए। परमाणु होते हैं । समय-प्रबद्ध केउन परमाणुओं की संख्या में कमीवेशी तीव, मंद योगों के अनुसार होती रहती है। .
एक्कं समयपबद्धं बंधवि एक्कं उदि कम्माणि । गुगहागीण विबड्दसमयपबद्ध हवे ससं ।४८।
मानी-संसारी जीव प्रति समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण कम बन्ध करता है और एक समय-प्रबद्ध प्रमाण हो कर्म प्रति समय उदय पाता है (झरता है) फिर भी खेढ गुणहानि प्रमाण कर्म सत्तामें रह जाता है ।