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(लोक्यन्ते जीवादयो यत्र स लोकः) । लोकाकाश के बाहर सब और अनन्त sterकाकाश है । वहाँ प्राकाश के सिवाय अन्य कोई द्रव्य नहीं होता ।
काल द्रव्य
निश्चयकाल और व्यवहार काल से काल के दो भेद हैं।
निश्चय काल-प्रादि मध्य अन्त से रहित यानी अनादि श्रनन्त है । और अमूर्त श्रवस्थित है, अगुरुलघु गुणवाला है। जीवादि पदार्थों की वर्तना का निमित्त कारण है । लोकाकाक्ष के एक एक प्रदेश पर एक एक काला रत्न की राशि के समान रहता है। जो प्रदेश है वह परमाणु का क्षेत्र है । कालद्रव्य लोकाकाश के प्रदेश जितना है, उतना ही रहता है। उस परमार्थकाल के माश्रय से समय ग्रावली उपवास, स्तोक, लब, घड़ी, मुहूर्त, दिवस, पक्ष, मास, ऋतु प्रयन, संघस्सरादि मेव से व्यवहार कालता है ।
परमाणु लोकाकाश में अपने साथ वाले दूसरे प्रदेश पर मन्द गति से जितने काल में जाता है वह समय है । समय घंटा, घड़ी दिन इत्यादि व्यवहार काल है । श्रसंख्यात समय की एक ग्राबली, श्रसंख्यात प्रावली का एक उच्छवास, सात उच्छ्वास से एक स्तोक होता है । सात स्तोक का एक लव ३८ ॥ साडे अड़तीस लव की एक घड़ी, दो घड़ी का एक मुहूर्त, तीस मुहंत का एक दिन, पन्द्रह दिन का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अन, दो अथन का एक संवत्सर, पांच संवत्सर का एक युग, दो युग के दश वर्ष, इस प्रकार आगे आगे दश गुणे करते जायें तो १००, १००० प्रयुत, लक्ष, प्रयुत, करोड़, श्र, पद्म, खर्ग, शंख, समुद्र, मद्य, अंत्य, परमान्त्य, परम करोड़ ऐसी संख्या आती है। उससे आगे बढ़ते बढ़ते संख्यात असंख्यात और अनन्त होते हैं। वहां श्रुत केवली का विषय उत्कृष्ट संख्यात है, उससे ऊपर बढ़ते २ जो प्रसंख्यात है वह अवधि ज्ञान विषय है । सर्वावधि ज्ञान के विषय से आगे अनन्त है । वह अनन्त प्रमाण केवल ज्ञान का विषय है । कादांग, कुमुदांग, कुमुद, बौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वाङ्ग औौर चौरासी लाख पूर्वाङ्ग का एक पूर्व होता है ।
निखर्व तथा महापद्म,
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पदुर्भाग, पद्म, नलिनांग, नलिन, कमलोग, कमल, शुद्योग त्रुदय, टांग, टट, अममांग, श्रमम, हाहांग, हाहा, हू हू अंग, हू हू, लतांग, महात्मता इस प्रकार संख्यायें हैं । उपयुक्त कही हुई संख्या को चौरासी लाख, प्रक्रम से गुणाकार करते जाने से लुत्पल लुत्पल राशियों को सीप, प्रकंपित,