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________________ ( ३६७) के सिवाय पहले चार) गुणस्थान होते हैं। माहारक तथा प्रामार मिश्र के अन्तर्मुहूर्त काल प्रमत्त गुणस्थान होता है। कार्माणयोग के औदारिक मिश्र के समान चार गुणस्थान होते हैं। वेदस्त्रिविधः ॥३५॥ पुवेद, स्त्री वेद तथा नपुंसक वेद ये तीन प्रकार के वेद होते हैं । नवविधो वा ॥३६।। १-द्रव्य पुरुष-भाव पुरुष, २-द्रव्य पुरुष-भाव स्त्री, ३-द्रव्य पुरुषभाव मघुसक, ४-द्रव्य स्त्री-भाव स्त्री, ५-द्रव्य स्त्री-भाव पुरुष, ६-द्रव्य स्त्रीभाव नसक, ७-द्रव्य नपुसकभाव-नसक, ६-द्रव्य नपुंसक भाव- पुरुष तथा ६ वां द्रव्य नपुसक भाव स्त्री ये ६ भेद होते हैं । इनमें से प्रथम के तीन भेद वाले को कर्म क्षय की अपेक्षा से घटित करना चाहिए। पुरिसिच्छिसण्डवेदोदयेन पुरिसिन्छिसंण्ढनो भावे । पामोदयेन सन्चे पायेण समा कहि विसमा ।। वेद्यते इति वेदः, अथवा आत्मप्रवृत्तः संमोहात्पादो देवः । प्रात्मप्रवृत्तगिधुदुबन सम्मोहोत्पादो वेदः ।। घास की अग्नि के समान पुवेद है, उपले (कडे) को अग्नि के समान स्त्री वेद है तथा तपी हुई ईटों के भट्ट की आग के समान नपुंसक वेद है। नारको तथा सम्मू छन जोवों के नपुसक वेद होता है। देवों में नपुसक नहीं होते । शेष सब जोबों में तीनों वेद होते हैं और मिथ्यात्व गुणस्थान से अनिवृत्ति करण गुणस्थान तक वेद रहता है। चतुःकषायाः ॥३७॥ क्रोष, मान, माया तथा लोभ ये चार प्रकार के कषाय होते हैं। और विशेष के भेद से अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानाबरण क्रोध, मान, माया लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया लोभ तथा संज्वलन क्रोध, मान, माया लोभ ये १६ कषाय होते हैं। सम्मत्तवेससयलचरित्त जहखादचरणपरिणामे । घावंति वा कसाया चउसोल असंखलोगभिदा ॥२८॥ सिलनमिक उदरेखा सित अस्थिवारुलता दबास्सेमे । सस्सलेयरिण मुसिलक्ख कुसुभ हरिहसमा ॥२६॥ . पानी-मानसासुबन्धी काम स्वरूपाचरण धारिप तथा सम्पत्य का,
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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