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________________ w ( ३६५) स्पर्शन इन्द्रिय अपने अपने शरीर के आकार होती है उससे हलका, भारी, रूखा, चिकना, कड़ा. नर्म, ठंडा गर्म ये ८ तरह के स्पर्श जाने जाते हैं। रसना इन्द्रिय से खट्टा, मोठा, कड़वा, कषायला चपरा ये पांच रस जाने जाते हैं उसका आकार खुरपा के समान है। प्राण इन्द्रिय से सुगन्ध दुर्गन्ध का ज्ञान होता है इसका आकार तिल के फूलके समान है। चक्ष इन्द्रिय से काला पोला नीला लाल सफेद तथा मिश्रित रंगों का ज्ञान होता है इसका प्राकार मसूर की दाल के समान है । कर्ण इन्द्रिय से अक्षरात्मक, अनक्षरात्मक शब्द सुने जाते हैं इसका प्राकार गेहे की नाली के समान है। षड् जीवनिकायाः ॥३२॥ अर्थ-संसारी जीब छह निकाय (समुदाय) रूप हैं-१पृथ्वी कायिक, २ जलकायिक, ३ अग्निकायिक, ४ वायुकायिक, ५ वनस्पतिकायिक और ६ अस काय । पृथ्वी रूप शरीर वाले पृथ्वीकायिक जीव हैं जैसे पर्वत आदि, खनिज पदार्थ (सोना चांदी प्रादि) पृथ्वीकायिक हैं । इनका आकार मसूर की दाल के समान है। जलरूप शरीर वाले जलकायिक जीव हैं जैसे जल, अोला, वर्फ आदि । इनका प्राकार जल की चूद के समान है। अग्नि रूप शरीर वाले जीव अग्निकायिक होते हैं। जैसे आग, बिजली आदि इनका प्राकार खड़ी हुई सुइयों के समान है। वायु रूप जीव वायुकायिक हैं जैसे हवा। इसका प्राकार ध्वजा के समान है। वनस्पति रूप शरीर जिनका होता है वे बनस्पतिकायिक हैं जैसे पेड़पौवे, बेल आदि । इनके आकार अनेक प्रकार के हैं। दो इन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक जीव त्रम होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों में सबसे बड़ी अवगाहना कमल की है जो कि एक हजार योजन का है। दो इन्द्रिय जीवों में बारह योजन का शंख, तीन इन्द्रियों में तीन कोश की ग्रंष्मी (चींटी), चार इन्द्रियों में एक योजन का भोंरा और पंचेन्द्रियों एक हजार योजन का स्वयम्भूरमरण समुद्रवर्ती राघव मत्स्य सबसे बड़ी
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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