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________________ ( ३२१) हे गुरुदेव ! मैं आपके चरण कमलों के प्रसाद से सभी शास्त्रों में अन्य आचार्य की अपेक्षा पारगामी होना चाहता हूँ | इस प्रकार गुरु से ३-५ या ७ बार पूछना चाहिए। ऐसा करने से उत्साह और विनय मालूम पड़ता है। इस प्रकार अपने गुरुजनों से प्राज्ञा लेकर साथ में तीन या दो मुनियों को लेकर जाना चाहिए । इस प्रकार दस प्रकार के समाचारों का प्रतिपादन किया गया । जो व्यक्ति इन दश प्रकार समाचारों का पालन करते हुये अपने गुरु के प्रति श्रद्धा रखते हैं उनके विनय ज्ञान व वैराग्य की वृद्धि होती है तथा संसार, शरीर और भोग से निवेग व विकार रहित हेयोपादेय तत्त्वों में प्रवीणता प्राप्त हुआ करती हैं । अन व आदि बारह प्रकार की अनुप्रेक्षाओं में उनकी सदा भावना बनी रहती है और इसी के द्वारा उनके ऊपर आने वाले उपसर्गों को सहन करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार मुनियों के समाचार का संक्षिप्त वर्णन किया है आर्यिकाओं का समाचार: आर्यिकायें परस्पर में अनुकूल रहती हैं । ईर्ष्याभाव नहीं करती, प्रापस में प्रतिपालन में तत्पर रहती हैं, क्रोध, वैर, मायाचारी इन तीनों से रहित होती हैं । लोकापवाद से, भयरूप लज्जा परिणाम व न्याय मार्ग में प्रवर्तने रूप मर्यादा, दोनों कुल के योग्य आचरण इन गुणों से सहित होती हैं । शास्त्र पढ़ने में, पढ़े शास्त्र के पाठ करने में, शास्त्र सुनने में, श्रुत के चितवन में अथवा अनित्यादि भावनाओं में और तप विनय संयम इन सबमें प्रायिकायें तत्पर रहती हैं तथा ज्ञानाभ्यास शुभयोग में सदा संलग्न रहती हैं। जिनके वस्त्र विकार रहित होते हैं, शरीर का प्राकार भी विकार रहित होता है, शरीर पसेव व मल से लिप्त है तथा संस्कार (सजावट) रहित है । क्षमादि धर्म, गुरु आदि की संतान रूप कुल, यश, व्रत के समान जिनका प्राचरण परम विशुद्ध हो, ऐसी प्रायिकायें होती हैं। जहां असंयमी न रहें, ऐसे स्थान में, बाधा रहित स्थान में, क्लेश रहित गमन योग्य स्थान में दो तीन अथवा बहुत प्रायिकाएं एक साथ रह सकती हैं। यायिकाओं को बिना प्रयोजन पराये स्थान पर नहीं जाना चाहिये 1 यदि अवश्य जाना हो तो भिक्षा आदि काल में बड़ी आग्निका से पूछकर अन्य ग्रायिकाओं को साथ में लेकर ही जाना चाहिए। प्रागे आयिकाओं को इतनी क्रियायें नहीं करनी चाहिये:-- आर्यिकाओं को अपनी बसतिका तथा अन्य घर में रोना नहीं चाहिये, TRA
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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