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________________ ( २११ ) कुर्वन नावतिभिः सार्द्ध संसर्ग भोजनादिकम् । प्राप्नोति वाच्यतामत्र परच च न तत्फलम् ॥ अर्थ - भूमि पर देख भालकर पैर रखना चाहिए, कपड़े से छान कर जल पीना चाहिए, वचन सत्य बोलना चाहिए, अपना मन शुद्ध करके चारित्र आचरण करना चाहिए, शराब, भंग आदि पीने वालों के घर खान पान नहीं करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध भी नहीं रखना चाहिए । शुद्ध खान पान न करने वाले ग्रवती लोगों के साथ भोजन आदि का सम्पर्क कभी न करे। ऐसा करने से इस लोक में निन्दा होती है और परलोक में शुभ फल नहीं मिलता । कानड़ी श्लोक: व्रतहीनर संसर्ग, व्रतहीरित भुक्तं । व्रतहीनर पंक्ति, उरि सदागदमोथं । १२६० थानी - व्रती पुरुषों को व्रत -हीन पुरुषों के साथ संसर्ग नहीं रखना चाहिए, न उनके बर्तनों से अपने बर्तन मिलाने चाहिए, न व्रतहीन मनुष्यों के हाथ का बना भोजन करना चाहिए तथा न कभी अव्रती पुरुषों के साथ पंक्ति भोजन करना चाहिए 1 त्याज्य पदार्थ: चर्मपात्रेषु पानीयं स्नेहं च कुडुपादिषु । व्रतस्थो वर्जयेन्नित्यं योषितश्च व्रतोज्झिताः | ६ | वत्सोत्पत्ति समारभ्य पक्षात्प्राग्दग्धदुग्धकम् । तदध्यादि परित्याज्यमाजं गथ्यं च माहिषम् ॥७॥ नवनीतं प्रसूतं च शृङ्गवेर मसंस्कृतम् । पलाण्डु लशुरणं त्याज्यं मूलञ्च कलिङ्गकम् |८| अर्थ- चमड़े के बने हुए कुप्पे आदि में रखा हुआ घी, तेल आदि का व्रती पुरुष को त्याग कर देना चाहिए। व्रत रहित ( विधर्मी ) स्त्रियों का पाणिग्रहण न करना चाहिए। बच्चा उत्पन्न होते से १५ दिन तक गाय, भैंस, बकरी का दूध, दही महीं खाना चाहिए । मक्खन (दो मुहूर्त पीछे का ), फूल, अप्रासुक, अदरक, प्याज, लहसुन, मूल ( मूली को जड़, गाजर आदि ) और तरबूज (मांस जैसा दिखाई देने के कारण त्याग देना चाहिए ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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