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प्रकाशनीय वक्तव्य उत्तरी भारत के सौभाग्य से जयपुर-अलबर-फिरोजपुर-गुड़गांवा आदि अनेक स्थानों में धर्म प्रभावना करते हुए बाल ब्रह्मचारी विद्यालंकार परम पूज्य १०८ प्राचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का दिनांक २६-५-१६५५ रविवार को प्रातःकाल भारतवर्ष को राजधानी देहली में शुभागमन हुा। समस्त जन समाज ने आनन्द में विभोर होकर गद्गद् हृदय से भक्ति भाव पूर्वक महाराज जी का स्वागत किया। देहली को समाज को महाराज जी के दर्शन पाकर तथा उनके कल्याणकारी उपदेश सुनकर अत्यन्त धर्म लाभ मिला ।
संक्षिप्त परिचय:-प्राचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का जन्म संवत् १९६५ में बम्बई प्रान्त के बेलगांव जिले में कोयलपुर नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता जी का नाम श्री सत्यगौड़ तथा माताजी का अक्कावती था । माताजी इस संसार को प्रसार जानकर आपको तीन मास की ही प्रायु में छोड़ कर चल बसीं। पिता जी ने भी अधिक मोह न रक्खा और ६ (नो) वर्ष पश्चात् वे भो परलोक सिधार गये । माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् आपका पालन-पोषण मापकी नानी जी ने किया ।
आपने सोलह वर्ष की आयु में हो कानड़ी और महाराष्ट्री भाषानों का विद्याध्ययन कर लिया। जिस समय आप १६ वर्ष के हुए अापके मामाजी ने प्रापका विवाह करने का विचार किया, परन्तु संयोगवश श्री जैकीति जी मुनि महाराज का आपके ग्राम में शुभागमन हुआ । मुनि महाराज का निमित्त और उपदेश मिलते ही आप में धर्म भावना जाग्रत हो गई और गुरु के चरणों में तन मन लगा दिया । गुरुजी ने सबसे पहले अभक्ष पदार्थों का त्याग कराया पौर अष्टमूल गुण धारण कराये। कुछ दिन बाद गुरु जी के साथ ही श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा को चले गये।
गुरु जी के साथ रहने पर दिन-प्रति दिन धर्म की ओर ध्यान लगने लगा और मुनि दीक्षा लेने की इच्छा प्रगट की-परन्तु बाल्य अवस्था होने के कारण और श्रावकों के विरोध करने पर आपको रामटेक तीर्थ पर सर्व प्रथम ऐलक दीक्षा दी गई । परन्तु आपके भाग्रह करने पर एक