________________
(२
)
शेष रहे तो विपत्ति, ४ रहे तो क्षम, ५ शेप रहे तो पृथकता,६ शेष रहे तो साधन प्राप्त होना, ७ शेष रहने पर वध, ८ रहने पर मैत्री, ६ रहने पर परम मंत्री समझना चाहिए । इनमें २-४-७-८ परम शुभ हैं, ६ मध्यम है। ये नाम और गुरण के अनुसार फल देते हैं ।
चन्द्र बल जानने की विधिः
विवाह कुण्डली में बधू वर की जन्म राशि में पहला चन्द्र हो तो पुष्टि, दूसरा हो तो सुख की कमी, तीसरे स्थान में धन लाभ, चौथे में रोग, पांचवें में कार्य नाश, छठे में विशेष द्रव्य लाभ, सातवें स्थान में राज सन्पान, पाठवें स्थान में चन्द्र हो तो निश्चय से मरण , नौवें में भय, दसवें में सम्मत्ति, ग्यारहवें में द्रव्य लाभ और बारहबै स्थान में चन्द्र हो तो अनेक प्रकार के दुःख प्राप्त होते हैं।
___ सारांश--२-४-५-५-६-१२ स्थान का न्द्र अशुभ है। शुक्ल पक्ष में २-५.६वें स्थान पर रहने से भी वृष्णि पक्ष में ४-८-१२ वें स्थान पर रहते हुए भी चन्द्र शुभ माना गया है ।
पंच क देखने की विधि। प्रतिपदा के पहले बीते हा तिथि, वार, नक्षत्र की संख्या में लग्न संख्या को मिलाकर जोड़ में 8 से भाग देने पर शेष १ रहे तो मृत्यु, २ शेष तो अग्नि, ४ शेष रहे तो राज्य, ६ रहे तो चोरी भय, ८ रह जावे तो रोग, यदि ३-५-७ शेष रहे तो निष्पंचक होता है।
ऊपर कहे हुए पंचक दो को विवाह, उपनयन, संस्कार, नवीन घर निर्माण ; नूतन ६ ! वेश इत्यादि शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। ३-५-७ शुभ है, शेष अशूभ हैं ।
रतिबल तथा गुरु बल जानने की विधि
विवाह की कुण्डली में वर की राशि से रवि रहने की राशि तक गिनने पर यदि ३-६-१०-११ वें स्थान में रवि हो तो उस मास में रवि बल समझना चाहिए । इसी प्रकार गुरु की राशि तक गिनने पर २.५-७-६-१०-११ वें स्थान पर गुरु हो तो गुरु बल समभाना चाहिए । वर को गुरु बल तथा रवि बल हितकारी है । स्त्रियों के लिए गुरु बल ही हितकारक होता है । विवाह में मुकूट बांधते समय गुरु बल श्रेष्ठ माना गया है ।
इस प्रकार यहां आवश्यक ज्योतिष-विषय दिया गया है, विस्तार के भय से अन्य विषय को छोड़ दिया है।