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तरवक्कु पुष्यदोळ' । सुरुह प्रियरिपरभिजेयोळ हरिरणांकर ||४३||
मनुष्य क्षेत्र के अन्दर रहने वाले सूर्यो का अन्तर लवण समुद्र से लेकर पुष्करार्द्ध द्वीप पर्यन्त अपने अपने क्षेत्र में एक दिशा के सूर्य बिम्ब क्षेत्र को अपने अपने विष्कम्भ से निकालकर शेष बचे हुए श्रंक से उन्हीं विम्बों में भाग देने से अन्तर आ जाता है। उस अन्तर का अर्द्ध प्रमाण छोटी वीथी का अन्तर आता है और पुष्करार्द्ध पर्यन्त दो दो चन्द्रादित्यों के लिए एक गमन क्षेत्र रहता है । उसका प्रमाण ५१० योजन सूर्य विम्बादि से है । जम्बू द्वीपस्थ सूर्य चन्द्र १५० योजन करते हैं। बत्ते हुए योजन लवण समुद्र में र करते हैं और बाहरी सूर्य चन्द्र अपने अपने क्षेत्र में गमन करते हैं ।
सु
प्रतिदिवसमोन्दे वीथियो ।
ळ तोळल्वरिन्नेन्दु गळ् तमावरिसिरे नरेम् ॥
भत्तनात्कक्कु तारा-1
पतियोऴ् पविनेदुवीथि जिनपतिमतद ||४४ ॥
अपनी अपनी वोथी का विस्तार पिंड के चार ( गमन) क्षेत्र से यदि निकाल दिया जाय तो रूपोन पद भखित अपने अपने वीथी के विस्तार ( चौड़ाई ) पिण्ड को चार क्षेत्र में घटा कर उसमें से एक और घटा देने पर वीथी का अन्तर प्राप्त हो जाता है । उस अन्तर में अपने अपने बिम्ब को मिला देने से दिन की गति निकल श्राती है ।
विम्वादिकयोजन युग, मम्बुजमित्र दिवसगति दिशोना-1
बेरसिद सुते, विम्ब मुमिन्दु गी श्रदविवेयलंघनेगळ ॥४५॥
सबसे प्रखर वाली भीतर की बीथी का अन्तर रखकर मेरु पर्वत के सूर्य का अन्तर उसमें मिलाकर उभी में दिवस गति मिला देने से वीथी का अन्तर निकल भाता है। इस प्रकार सर्वाभ्यन्तर बीथी के प्रमाण को समझकर उसके साथ दिवस गति की परिधि के प्रभार को गुरणा करके उपर्युक्त अन्तर में मिलाते जायें तो वीथी की परिधि का परिमाण निकल आता है । यह सम सूर्य का वर्णन हुआ इसी प्रकार चन्द्रमा का भी वर्णन समझ लेना चाहिए । चन्द्र और सूर्य बाहर निकलते हुए अर्थात् बाह्य मार्ग की ओर श्राते समय शीघ्र गति वाले और अत्यन्त मार्ग की ओर प्रवेश करते हुए मन्द गति से संयुक्त होते हैं इसीलिए वे समान काल में ही असमान परिधियों का भ्रमण