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________________ उस प्रथम पृथ्वी के नीचे एक एक रज्जु प्रमाण लोकाकाशं है । वहां भी जहां मारकी नहीं हैं ऐसे स्थान में पंच स्थावर जीव होते हैं । मोदलिधर्मयखरभा गदोळ तनुमाहिय मध्यभागद पंचा। ढ्यदोळ कुमार रेण्बा । त्रिदशरभवनगळप्पति विपुलंगळ ॥ मा प्रकारात मूगों के द्वारा अमोलोक का स्वरूप संक्षेप से कहा गया है। मध्य लोक का स्वरूप जम्बूद्वीपलवरणसमुद्राद्यसंख्यातपोसमुद्राः ॥१॥ अर्थ--मध्य लोक में जम्बू द्वीप तथा लवण समुद्र आदि असंख्यात द्वीप और समुद्र है। मध्य लोक का स्वरूप इस प्रकार है--जिस लोक के बीच असंख्यात द्वीप समुद्र व्यंतर देव तथा ज्योतिष्क विमान रहते है उस मध्य लोक के बीच नाभि के समान स्थित महामेरु पर्वत को अपने बीच किये हुए एक लक्ष योजन विस्तार वाला जम्बू द्वीप है। उससे दुने विस्तार वाला लवण समुद्र है । तथा लवणोदधि से दूने विस्तार वाला धातकी खंड द्वीप है । पौर उससे दूने विस्तार वाला कालोदधि समुद्र है। और उससे दुगुना पुष्करवर द्वीप है। इससे आगे कहे जाने वाले समुद्र और द्वीपों के नाम ये हैं पुष्कर द्वीप से पुष्कर समुद्र । ४ वारुणी वर द्वीप, ५ क्षीरवर द्वीप, ६ घृतवर द्वीप, ७ क्षौद्रवर द्वीप, ८ नंदीश्वर द्वीप, ह वरुण वर द्वीप, १० अरुणाभास द्वीप, ११ कुडलवर द्वोप, १२ शंखवर द्वीप, १३ रुचिकवर द्वीप, १४ भुजंगवर द्वीप, १५ कुशिकवर दीप, १६ क्रौंचवर द्वीप ये १६ द्वीप समुद्र के अंतर भाग में हैं। वहां से आगे असंख्यात द्वीप समुद्र जाने पर क्रम से मंतिम के १६ द्वीप समुद्र के नाम बताते हैं । (१) मरिणच्छिला द्वीप मरिच्छिला समुद्र (२) हरिताल द्वीप हरिताल समुद्र । (३) सिन्धुवर द्वीप सिन्धुवर समुद्र (४) श्यामकवर द्वीप श्यामकवर समुद्र (५) अंजनवर द्वीप अजनवर समुद्र (६) हिंगुलिकवर द्वीप हिंगुलिकवर समुद्र (७) रूप्यवर द्वीप रूप्यवर समुद्र (८) सुवर्णवर द्वीप सुवर्णवर समुद्र
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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