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श्री. में, मेरी मला रासाजी . मी.
N शमी प्रलयापन पER में siti ali
___TA:आ. . ५..२५० सम्पादकीय
१. प्रति-परिचय
प्रस्तुत प्रतिका जिस प्रतिपरसे अनुवाद तथा सम्पादन हुआ है मात्र कहीं एक प्रति जैन साहित्यमें उपलब्ध जान पड़नी है और भी आप पं० मापूनमः: ग गाईके गानुमसे कोई दो वर्ष पहले वीरसेवामन्दिरको प्राप्त हुई थी। इस प्रतिको लम्बाई चौड़ाई १०४६ इंच है। दागी और पायीं वोनों ओर एक-एक इंचका हाशिया छूटा हुआ है। इसमें कुल पाँच पत्र हैं और अन्तिम पत्रको छोड़कर प्रत्येक पत्रमें १८.१८ पंक्तियाँ तथा प्रत्येक पंक्ति में प्रायः ३२, ३२ अक्षर हैं । अन्तिम पत्रमें (6+३==) १२ पक्तियाँ और हरेक पंक्ति में उपर्युक्त (३२, ३२) जितने अक्षर हैं । कुछ टिप्पण भी साथमें कहीं कही लगे हुए हैं जो मूलको समझने में कुछ मदद पहुंचाते हैं । यह प्रति काफी (सम्भवतः चार-पाँचसौ वर्षकी) प्राचीन प्रतीत होती है और बहुत कुछ जीर्ण-शीर्ण दशामें है। लगभग चालीस-पैंतालीस स्थानोंपर तो इसके अक्षर अथवा पद-वाक्यादि, पत्रोंके परस्पर चिपक जाने
आदिके कारण, प्रायः मिद से गये हैं और जिनके पढ़ने में बड़ी करिनाई महसूस होती है । इस कठिनाईका प्रेमीजीन भी अनुभव किया है और अपने 'जैन साहित्य और इतिहास' (पृ. १३६ के फुटनोट) में प्रविका कुछ परिचय देते हुए लिखा है-"इस प्रतिमें लिखनेका समय नहीं दिया है परन्तु वह दो-तीनसौ वर्षसे कम पुरानी नहीं मालूम होती 1 जगह जगह अक्षर उड़ गये हैं जिससे