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शासनचतुविशिग्न එරටට
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जो सोधर्मेन्द्र से सम्पूजित सम्मेदगिरिपर प्रसिद्ध बीस जिनेन्द्र हैं, जो अपने ज्ञानकी प्रभासे अतुलनीय हैं और जिनकी भव्यजन ही अपने उत्तम पुरायसे कष्टके साथ सीढियोंपर चढ़कर वन्दना करते हैं, अभव्यको जिनके दर्शन नहीं होते, यह घव है वह बीस जिनेन्द्र दिगम्बर शासनके प्रभाव एवं महिमाको लोकहृदयों में अति करें।
प्रस्तुत में यह बताया गया है कि श्रीसम्मेदगिरिसे निर्वाणप्राप्त बीस जिनेन्द्रोंके जो frase as प्रतिष्ठित हैं और जो arratमुद्रामें मौजूद हैं उनके भव्योको तो दर्शनादि होते हैं परन्तु अभव्यको नहीं होते, यह सम्मेदशिखर और वहाँ के बीस जिनेन्द्रोंका खास अतिशय तथा माहात्म्य है ||११||
पाताले परमादरेण परया भक्त्याऽर्चितो व्यन्तरेर्यो देवैरधिकं स तोपमगमत्कस्याऽपि पुंसः पुरा । भूभृन्मध्यतलादुपर्यनुगतः श्रीपुष्पदन्तः प्रभुः श्रीमत्पुष्पपुरे विभाति नगरे दिग्वाससां शासनम्
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जो पहले व्यन्तरदेवोंके द्वारा पातालमें— अधोलोकमें बड़ी भक्तिसे पूजे गये, वादको पर्वतके मध्यतलसे ऊपर आनेपर किसी पुरुष अधिक तोषके विषय हुए अर्थात् जिनके भूगर्भसे प्रकट होने पर किसी एक पुण्यात्माको बड़ा आनन्द हुआ और जो श्रीपुष्पपुर (पटना) नगर में सुशोभित है वह श्रीपुष्पदन्तप्रभु दिगम्बर शासनकी महिमा विस्तारित करें ||१२||
स्रष्टेति द्विजनायकैर्हरिरिति [ प्रोद्गीयते] वैश्र (ष्ण) वे बौद्धर्बुद्ध इति प्रमोदविवरौः शूलीति माहेश्वरैः । कस्यचित् | २ सन् | ३ प्रति ।