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शासन-चतुस्बिंशिका
[७ అఆఆ0096669eeeeeee रहे थे और जिसका अतिशय यह है कि जैनबिद्रीमें वह देवोद्वारा
आज भी प्रतिदिन पूजा जाता है और इस तरह अपने प्रभावद्वारा लोकमें दिगम्बर-शासनकी महत्ता त्यापित करता है ॥७॥
यं दुष्टो न हि पश्यति क्षणमपि प्रत्यक्षमेवाऽखिलं सम्पूर्णावयवं मरीचिनिचयं शिष्टः पुनः पश्यति । पूर्वस्यां दिशि पूर्वमेव पुरुः सम्यूज्यते' सन्ततं स श्रीपार्श्वजिनेश्वरो दृढयते दिग्वाससां शासनम् ।।।।
जिसका प्रत्यक्ष अतिशय यह है कि समस्त और सम्पूर्ण अवयव विशिष्ट होनेपर भी जिस मरीचिनिचय (तेजोमय) श्रीपाश्वनाथका दुष्टको एक क्षण के लिये भी दर्शन नहीं होता किन्तु शिष्ट (सज्जन )को उनका दर्शन होता है और पुरुषोंद्वारा पूर्व दिशामें हमेशा सबसे पहले जिनकी सासरूपसे पूजा की जाती है वह श्रीपार्श्व जिनेश्वर दिगम्बर-शासनको हद करें-मजबूत करें।
इस पद्यमें पूर्वदिशाके पार्श्वजिने घरका यह अतिशय बतलाया गया है कि दुष्ट आशयवालोंको उनका दर्शन नहीं होता; किन्तु श्रेष्ठ आशयवालोंको उनका दर्शन होता है । अर्थात शृभाशयवाले ही उनका दर्शन कर पाते हैं ॥८॥
यः पूर्व भुवनैकमण्डनमणिः श्रीविश्वसेमाऽऽदरात् निश्वकाम महोदधेरिव हृदात्सद्वत्रवत्याऽद्भुतम् । क्षुद्रोपद्रव-वर्जितोऽवनि-तले लोक नरीनर्तयन स श्रीशान्तिजिनेश्वरो विजयते विश्वाससां शासनम् ||६||
१ सः सम्पूज्यते । २ प्रति ।